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हार गई जिंदगी (लघुकथा)

  

हार गई जिंदगी

चार दिन से ऋचा ड्यूटी पर नहीं जा रही थी, बुखार के साथ शरीर में लाल्गी आने से परेशानी और बढ़ गई थी जिस कारण अब बिस्तर से उठकर चलना भी मुश्किल हो रहा था।

प्रशिक्षण दौरान पढ़ाया गया था कि अगर माता रानी की क्रोपी बढ़ी ऊम्र में हो जाए तो रोग जानलेवा भी हो सकता है ।

यह बात वह पति परमेशर कई बार बता चुकी थी, लेकिन अभी तक कोई जवाब उसके द्वारा नहीं मिल रहा था इक बार ऋचा ने कहा कि वह माँ के घर जा आती है, लेकिन सासू माँ ने इनकार कर दिया था।

 वैसे तो कई बार जब घर में मामूली झगड़ा हो जाता और ऋचा नराज़ हो कर अपनी माँ के घर चली जाती थी।

उस दिन डॉक्टर का कहना तो सासूजी ने मान लिया कि बच्चों को ऋचा के  पास नहीं आने देना, मगर  इस बात पर वह  सहमत नहीं हो रही थी कि ऋचा का इलाज भी कराया जाए।

"क्या उसके पास यह भी अधिकार नहीं कि वह खुद की बीमारी का इलाज, भी खुद से करा सके" ऋचा सोचने लगी।

"सासू माँ, उसका इलाज क्यों नहीं कराना चाहती" ऋचा की समझ में नहीं आ रहा था।

लेकिन आज रात चोरी से ऋचा  अपनी परेशानी की प्रवाह किए बिना ही अस्पताल की ओर चल पड़ी।

ऋचा अस्पताल पहुंचते ही अचानक  गेट पर बहोश होकर गिर पड़ी।

इतनी देर में सासू माँ  भी परिवार के साथ वहां पहुंच गई और कहने लगी  "मैं इलाज कैसे करा सकती हूँ, अगर माता राणी नराज़ हो जाती तो मेरे घर का पता नहीं क्या हो जाता"।

"मुझे अपने घर को बचाने के लिए। इसे इलाज़ कराने से रोकना ही था ....." और  सभी ऑंखें नम हो गई |

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

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Comment by Mahendra Kumar on April 28, 2017 at 9:51pm
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें। लघुकथा में अभी संपादन की आवश्यकता है। कोशिश कीजिए कि बात कम से कम शब्दों में पूरी हो जाए। सादर।

कृपया ध्यान दे...

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