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जिंदगी है प्यासी सुधा के लिए..

  जिंदगी है प्यासी सुधा के लिए..
जिंदगी है प्यासी सुधा के लिए,
और तुम तो ज़हर ही पिलाते रहे.
गुन  गुनाते रहे हम मधुर राग में,
मेरे राहों में कांटे बिछाते रहे,
नहीं चाहता मैं ऊँची अटारी ,
सच्चाई  हमको है दुनिया में प्यारी.
मैं चाहता हूँ शीतल हवाएं ,
तुम तो धरा को तपाते रहे,
खिले हों सुमन, और नजदीक  हों ,
तो मेरी नज़र भी  ना मजबूर हो.
मैं पलकें  उठाये खड़ा रह गया ,
और तुम तो दीवारें उठाते रहे,
मेरे अधरों में देखो मधुर राग है,
मेरे पलकों में  दुनियां का  समभाव  है,
नहीं चाहता कोई बर्बाद हो पर,
तुम तो हकीक़त छुपाते रहे,
जब तेरी ये दुनिया मुनासिब नहीं,
ऐसी दुनिया का मैं भी हूँ आशिक नहीं.
मेरी तकदीर ऊँची सदा के लिए ,
और तुम बंधनों को लगाते रहे.   

-------रामेश्वर नाथ तिवारी

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Comment

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Comment by Tilak Raj Kapoor on June 1, 2011 at 6:34pm

खूबसूरत।

Comment by Ajay Singh on June 1, 2011 at 5:27pm
veryyyyy  gooooodddd
Comment by Abhinav Arun on May 30, 2011 at 12:23pm
waah achchee zameen kee rachna aur behad prabhaaavee bhee badhaaee kabool karen r.n. jee

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 30, 2011 at 9:57am
आदरणीय आर एन तिवारी जी, अच्छी रचना प्रस्तुत किया है आपने, भाई राणा ने कुछ इशारा किये है, निवेदन है की अन्य साथियों की रचनाओं पर भी अपनी बेबाक राय दिया करे, जिससे सार्थक साहित्य सृजन में सहयोग हो सके |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on May 29, 2011 at 3:07pm

आदरणीय तिवारी जी 

आपका ई- मेल मिला ...अस्तु यहाँ चाला आया|

रचना अच्छी है ..कथ्य अच्छा है ..शिल्प में थोड़ी कमियां हैं...इसके अतिरिक्त व्याकरण की दृष्टि से भी एक दो जगह त्रुटियाँ हैं ..मसलन 

"नहीं ताज हमको है दुनिया में प्यारी"...यहाँ पर ताज का लिंग गलत तरीके से प्रयोग किया गया है\

 

मेरे पलकों में दुनियां की सुभाग है,...यहाँ भी सुभाग का गलत लिंग चुना गया है|

 

बहुत बहुत धन्यवाद\

कृपया ध्यान दे...

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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