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ग़ज़ल- यह ज़माना हाल पर मुस्कुराना चाहता है

2122 2122 2122 2122
हाथ पर बस हाथ रखकर याद आना चाहता है ।
वो मुकद्दर इस तरह से आजमाना चाहता है ।।

गुफ्तगूं होने लगी है फिर किसी का क़त्ल होगा ।
है कोई मासूम आशिक़ सर उठाना चाहता है ।।

शह्र में दहशत का आलम है रकीबों का असर भी ।
तब भी वह अहले ज़िगर से इक फ़साना चाहता है ।।

बेसबब यूं ही नही वह पूछता घर का पता अब ।
रस्म है ख़त भेजना शायद निभाना चाहता है ।।

स्याह रातों का है मंजर चाँदनी मुमकिन न होगी ।
रोशनी के वास्ते वह घर जलाना चाहता है ।।

चार सू खुशबू हवा में सुर्ख है चेहरा किसी का ।
चन्द लम्हों के लिए वह दिल लुटाना चाहता है ।।

नफरतों के इन सियासी अब्र से है तीरगी यह ।
अब कोई सूरज अमन का डूब जाना चाहता है ।।

मत वफ़ा का जिक्र कर उससे वफ़ा होगी भला कब ।
वो गुहर ख़ातिर सदफ़ पर जुल्म ढाना चाहता है ।।

गो के अब अच्छा मुसाफ़िर कह रहे हैं लोग उसको ।
दाग रहजन का वो दामन से मिटाना चाहता है ।।

बैठ जाते हैं परिंदे जब मुहब्बत में शज़र पर ।
है कोई जालिम ,कबूतर पर निशाना चाहता है ।।

दर्द के इज़हार से हासिल हुआ यह फ़लसफ़ा भी ।
यह ज़माना हाल पर बस मुस्कुराना चाहता है ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on February 28, 2017 at 11:57am
आ0 रवि शुक्ला सर सादर नमन ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 28, 2017 at 11:56am
आ0 प्रियदर्शी जी शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 28, 2017 at 11:55am
आ0 मो आरिफ सर विशेष आभार
Comment by Ravi Shukla on February 28, 2017 at 11:08am

आदरणीय ननीन मणि जी , बहुत बढि़या ग़ज़ल कही आपने । शे'र दर शे'र दाल के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Mohammed Arif on February 25, 2017 at 9:32am
आदरणीय ननीन मणि जी आदाब, बहुत शानदार ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाल के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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