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जिधर भी मैं जाऊँ डगर आपकी है
हवा मे फज़ा में ख़बर आपकी है
महज़ रात थी आपके हक़ में लेकिन
सुना है कि अब हर पहर आपकी है
हरिक पुत्र को मुफ़्त मिलती है ममता
तो, ममता भी अब उम्र भर आपकी है
रपट कौन लिक्खे सभी आपके हैं
कि सरकार भी मोतबर आपकी है
ज़ियारत करें ना करें आप लेकिन
सियासत पे टेढ़ी नज़र आपकी है
नज़ीर आपकी अब मैं दूँ भी तो कैसे
हरी-सावनी सी नज़र आपकी है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मो. आरिफ भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
आदरणीय गिरिराज सर, बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. आपने बह्र-ए-मुतकारिब के वज्न पर ग़ज़ल कही है लेकिन बह्र-ए-मुतदारिक का वज्न लिख दिया है. सादर
जिधर भी मैं जाऊँ डगर आपकी है
हवा मे फज़ा में ख़बर आपकी है
हरिक काली रातों में छाये थे कल तक
सुना है कि अब दो पहर आपकी है
वाह आदरणीय गिरिराज जी .... क्या बात है ... वर्तमान को जीती इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।
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