For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या तूने भी देखी कहीं दिवाली

"क्या तूने भी देखी कहीं दिवाली"

हे अबोध ! क्या तूने भी देखी कहीं दिवाली?
तमपूर्ण निशा में क्या कहीं मिली उजियाली?

मैंने तो उजियालों में उजियाले होते देखे,
विद्युत से जगमग महलों में दिये जलते देखे,
फुलझड़ियों के बीच छूटते कई अनार देखे,
खुले बाज़ारों में जगमग करती देखी दिवाली।
हे नन्हे ! क्या तुझे दिखी अँधियारों में खुशियाली?

कहकहों ठहाकों बीच गरजते हुए पटाखे सुने,
मैंने मधुर आरती बीच सुरीले मंगलगीत सुने,
ना ना बीच और और के आग्रह कई कई सुने,
मैंने बीच बधाई सन्देशों के सुनी दिवाली।
भूखे पेटों की सड़कों पे क्या तूने सुनी कौवाली?

मुझे भरे पेट में भी मिष्ठानों के स्वाद अनेक मिले,
मेरे वैभव को वृद्धि देते मा के नये वरदान मिले,
मंत्री, संत्री, अफसर, प्यादों के सत्कार मिले,
डलिया भर भर उपहारों में मुझे मिली दिवाली।
पतझड़ सी तेरी दिवाली में क्या कभी मिली हरियाली?
हे अबोध ! क्या तूने भी देखी कहीं दिवाली?
तमपूर्ण निशा में क्या कहीं मिली उजियाली?

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 501

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रामबली गुप्ता on November 1, 2016 at 6:13am
भाव तो बहुत ही सुंदर लगा मुझे आद0 भाई वासुदेव जी लेकिन कहीं कहीं प्रवाह कम लगा मुझे। इस गीत को बराबर गुनगुनाते रहिये और जहां भी कुछ अटकाव लगे शब्दों को बदलकर प्रवाह सुंदर बनाइये। बाकी सब शुभ शुभ
सादर बधाई इस सुंदर रचना के लिए।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 31, 2016 at 2:51pm
आदरणीय कालीप्रसादजी आपके उत्साह वर्धन का बहुत आभार।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 31, 2016 at 11:07am

बहुत सुन्दर भाव ...सच है "भूखे पेटों की सड़कों पे क्या तूने सुनी कौवाली?"  जो भूखा है उसको क्या दिवाली और क्या होली ? ये सब तो धनवानों का है | बहुत सुन्दर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
18 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
18 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service