For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देखिये साहिब मेरा तो घर शिवाला हो गया (ग़ज़ल 'राज ')

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

मेरी बगिया खिल उठी मौसम निराला हो गया

आ गई  बेटी मेरे घर में उजाला हो गया

 

दीप खुशियों के जले शुभ शंख मानो बज उठे

देखिये साहिब मेरा तो घर शिवाला हो गया

 

लहलहाई यूँ फसल खेतों की मेरी देखिये

सोने चाँदी से मढ़ा इक इक निवाला हो गया 

 

बिन सुरा सागर के जैसे खाली था मेरा वजूद   

आते ही उसके लबालब ये पियाला  हो गया

 

पढ़ते पढ़ते रात दिन आँखें मेरी थकती नहीं

उसका चेह्रा खूबसूरत इक रिसाला हो गया

 

छोड़ बाबुल की गली को एक दिन वो जायेगी

सोचकर मेरे अभी से दिल पे छाला हो गया

 

उसकी जानिब गर बुरी आँखें उठें तो खींच ले 

ऐसा कातिल अब मेरी आँखों में जाला हो गया

---------------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 811

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2016 at 4:09pm

आद० सौरभ  जी ग़ज़ल पर शिरकत और सराहना दोनों के लिए दिल से आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2016 at 4:07pm

आद० तेजवीर सिंह जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ | खेद है प्रतिउत्तर देने में विलम्ब हुआ बाहर गई हुई थी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2016 at 4:06pm

आद० समर भाई जी ,मैंने डॉ० कमर साहब को भेज दी थी उन्होंने किसी नशिस्त में फिर सुनाई थी मेरे नाम का हवाला देके . 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2016 at 9:49pm

वाह ! अच्छी ग़ज़ल केलिए बधाइयाँ ..  

लेकिन, मतले के बाद वाला शेर कुछ बोल नहीं रहा बस ऐलान कर रहा है. कारण भी तो हो. :-))

पढ़ते पढ़ते रात दिन आँखें मेरी थकती नहीं

उसका चेह्रा खूबसूरत इक रिसाला हो गया............. वाह वाह ! 

ग़ज़ल अच्छी है.

 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 25, 2016 at 9:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी ।सुन्दर गज़ल ।

Comment by Samar kabeer on October 25, 2016 at 9:03pm
बहना आपने ये ख़ूबसूरत ग़ज़ल डॉ. क़मर साहिब को भेजी या नहीं ?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2016 at 8:30pm

आद० गिरिराज जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2016 at 8:29pm

आद० रामबली जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2016 at 8:28pm

आद० विजय निकोर जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से शुक्रिया आपका .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 10:10am

आदरनीया राजेश जी , खूबसूरत ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
12 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
13 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service