For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चुप्पी /कान्ता रॉय

एक चुप्पी इधर,एक चुप्पी उधर भी
चुप रहने का यह क्षण,दरअसल शोर था
झंझावात था

आमादा था निगलने पर
रिश्ते को रिश्ते के साथ ,जो आस्तित्वहीन था

उस आस्तित्वहीन की गर्माहट
धूप में चमकते,ताजमहल -सा तप्त था

दिल, दिमाग,नजर और  मन

छा कर बियाबानों के सन्नाटो में  
प्रपंचों के मायाजाल को,चीर ,ध्वस्त कर
लॉन के मखमली घास पर फैल
नर्म नर्म कोमल,रेंगती हुई सर्द सी चुप्पी अब
धीरे से करवट बदल रही थी

शोर में लिप्त, पगली-सी चुप्पी
हैरान हो कई कोणों से
स्वंय को घूरती नजर आती है

चुप की भट्ठी में, जल कर  तृप्त हो 
निशब्दता की तलाश में
शोर के खिलाफ बहुत दूर
निकल  जाने को बेकल  है

विवशता ने, घेरे में जकड़ लिया है
इस बार चुप्पी, हाथ नहीं लगने वाली
उसने भी नया घर,तलाश लिया है

अंगुलियों ने अंगुलियों से,अनुबंध कर
बाजुओं ने हासिल किया
अपनी आगोश में ताजमहल को

अबकी चुप्पी ने, मुड़कर नहीं देखा
कनखियों ने देखा कनखियों को, और हँसी पर जमकर हँसता रहा।


मौलिक और अप्रकाशित 

 

Views: 680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 5:52pm

बहुत खूब आदरणीय कान्ता जी । इस रचना के लिए बधाई ।

Comment by kanta roy on September 6, 2016 at 5:35pm
आप जैसे सिद्धहस्त रचनाकार से कविता पर सराहना पाना अच्छा लगा आदरणीय गिरीराज जी।आभार आपका हृदय से।
Comment by kanta roy on September 6, 2016 at 4:49pm
अच्छा लगता है आपके द्वारा रचना का ४०% पर भी पास होना आदरणीय सौरभ जी। आपके द्वारा बिम्बों के प्रयोग पर सावधानी और कोमा वाली बात , इस मार्गदर्शन को गाँठ लगाकर रखूँगी। आभार आपका हृदय से।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2016 at 4:23pm

आदरणीया कान्ता जी आपको कविता में गंभीर होते देखना भला लग रहा है. सर्वोपरि भाषा के हिसाब से आप बहुत मेहनत कर रही हैं. इसकी मुखर बानग़ी है यह कविता. हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ 

कविता पर अभी विशेष नहीं कहूँगा. लेकिन यह ज़रूर है कि आपकी कविताओं की अब प्रतीक्षा रहेगी.

भावनाओं को शब्दबद्ध करते समय तमाम बिम्बों के प्रयोग भाव को उलझाते भी हैं, यह अवश्य याद रखियेगा. 

दूसरे, कॉमा का अनावश्यक प्रयोग न करें. आपकी इस कविता में कई कॉमा लगे हैं जिन्हें हटा दिया जाय तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला. 

लेकिन फिर से कहूँगा, आपकी प्रस्तुति से मन बहुत प्रसन्न है. 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 10:44am

आदरनीया कांता जी , बहुत अच्छी लगी आपकी कविता , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by kanta roy on September 6, 2016 at 10:10am
रचना पसंद कर मेेरा उत्साह वर्धन के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीया राजेश कुमारी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 5, 2016 at 8:33pm

अंगुलियों ने अंगुलियों से,अनुबंध कर
बाजुओं ने हासिल किया
अपनी आगोश में ताजमहल को 

अबकी चुप्पी ने, मुड़कर नहीं देखा
कनखियों ने देखा कनखियों को, और हँसी पर जमकर हँसता रहा। ---हँसती रही 

 वाह्ह्ह्ह   बहुत  सुन्दर  बिम्बात्मक शैली में मन के उद्द्गारों को शब्दिक किया है आद० कांता जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:09pm
रचना पसंदगी के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीया कल्पना जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:09pm
आपको रचना अच्छी लगी तो यूँ लगा मेरे लिखने का जतन सफल हुआ है।आभार आपका हृदय से आदरणीय सतविन्द्र जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:08pm
चुप्पीमें निहित शोर का मर्म समझने के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीय सुशील सरना जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service