For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२२१ २१२१ १२२१ २१२


पगडंडियों के भाग्य में कोई नगर कहाँ ?
मैदान गाँव खेत सफ़र किन्तु घर कहाँ ? 
 
होठों पे राह और सदा मंज़िलों की बात
पर इन लरजते पाँव से होगा सफ़र कहाँ ? 
 
हम रोज़ मर रहे हैं यहाँ, आ कभी तो देख..
किस कोठरी में दफ़्न हैं शम्सो-क़मर कहाँ ? 
 
सबके लिए दरख़्त ये साया लिये खड़ा
कब सोचता है धूप से मुहलत मगर कहाँ !
 
जो कृष्ण अब नही तो कहाँ द्रौपदी कहीं ?
सो, मित्रता की ताब में कोई असर कहाँ ? 
 
क़ातिल तरेर आँख.. जताता है दोस्ती..
ऐसे में कौन कण्ठ ही होगा मुखर कहाँ ? 
 
अहसास ही सवाल थे अहसास ही ज़वाब
’रक्खी है आज लज्जत-ए-दर्द-ए-जिगर कहाँ !’
********
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1081

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vandana on August 19, 2016 at 7:25pm

होठों पे राह और सदा मंज़िलों की बात 
पर इन लरजते पाँव से होगा सफ़र कहाँ ? 
 
सबके लिए दरख़्त ये साया लिये खड़ा 
कब सोचता है धूप से मुहलत मगर कहाँ !

 

जो कृष्ण अब नही तो कहाँ द्रौपदी कहीं ?

सो, मित्रता की ताब में कोई असर कहाँ ? 

वाह बहुत खूब बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय 

Comment by मनोज अहसास on August 19, 2016 at 2:58pm
नमन करता हूँ आदरणीय
आपकी किसी रचना के आने से कई फायदे हो जाते हैं
सटीक जानकारी
अच्छी रचना का स्वाद
और भी बहुत कुछ एक जानकारी हमे भी दे दीजिये

इन लरजते पाँव लिखा गया है
बहुवचन में भी पाँव ही लिखते हैं क्या पाँवो नहीं
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 8:31am

आदरणीय सौरभ भाई , बेहतरीन मतला से शुरु हुआ सफर बेहतरीन गिरह पर खत्म हुआ है , क्या बात है । दिल से मुबारक बाद स्वीकार करें इस ग़ज़ल के लिये ।

बाक़ी प्रतिक्रियाओं के पढने के बाद मै तो यही कहूँगा कि मुझे इंगित शेर मे कहीं कोई कमी नही दिखी । बहर , अरूज , व्याकरण , भाषा और  कहन सही होने के बाद  शेर पर कहने के लिये कुछ बचता कहाँ है ?   जहाँ तक  कहन की बात है, तो कहन में सम्भावनायें तो हमेशा बनी ही रहतीं हैं , हर पाठक अपनी अपनी सोच से संभावानायें व्यक्त भी कर सकता है ।

किस कोठरी और इस कोठरी - पर भी मै आपसे सहमत हूँ ,  किस कोठरी कहने में विस्तार पा रही है कहन ।

और राबता समझ न आना कहन की जगह पाठक की समझ की कमी भी हो सकती है , शायद  शम्सो-क़मर  को सीधे अर्थों मे ले रहे हों ?

पूरी ग़ज़ल के लिये आपको पुनः बधाइयाँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2016 at 11:43pm

आदरणीय तस्दीक अहमद साहब, आप ग़ज़ल पर आये इसकी प्रसन्नता हमें भी है. हार्दिक धन्यवाद. आपके प्रश्न या आपकी शंका के बरअक्स फिर से सोचूँगा.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2016 at 11:41pm

प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया राजेश कुमारी जी.. 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 18, 2016 at 8:30pm

मोहतरम जनाब सौरभ  साहिब,  बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है  शेर दर शेर  मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---शेर नंबर 3 के ऊला और सानी मिसरे में तालमेल की कुछ कमी लग रही है   देख लीजियेगा -----


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 18, 2016 at 6:36pm

जो कृष्ण अब नही तो कहाँ द्रौपदी कहीं ?
सो, मित्रता की ताब में कोई असर कहाँ ? 
 
क़ातिल तरेर आँख.. जताता है दोस्ती.. 
ऐसे में कौन कण्ठ ही होगा मुखर कहाँ ? 
बहुत सुन्दर अशआर हुए आदरणीय सौरभ जी अच्छी ग़ज़ल के लिए दाद कुबूलें 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 18, 2016 at 6:13pm
शुभ शुभ आदरणीय

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2016 at 3:42pm

आप ही को क्यों आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, अबतक इसे पढ़ चुके हर एक पाठक को यह प्रस्तुति अच्छी ही लगी है. ओबीओ का यह पटल पर किसी रचना केलिए ’अच्छा से बहुत अच्छा’ करने के लिए उचित और सार्थक माहौल प्रदान करने का काम करता है. यह अवश्य है कि कई बार इस माहौल के कारण ही हम कुछ ऐसी बातें भी कहते-करते रहते हैं जो उक्त रचना के लिए तो नहीं होती, बल्कि उसके अलावा हुआ करती हैं. और, दूसरे पाठकों के लिए मार्गदर्शक की तरह होती हैं. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2016 at 3:38pm

आदरणीय विजय शंकर जी, सादर आभार.. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
25 minutes ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
6 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
6 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service