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बिकने लगा शबाब मुहब्बत के शहर में --- हर्ष महाजन

221 - 2121 -1221 -212

बिकने लगा शबाब मुहब्बत के शहर में,
रोके कोई शराब मुहब्बत के शहर में |

.

देखो गली-गली में हया छू रही ज़मीं,
कोई तो है नवाब मुहब्बत के शहर में |

धोखा है हर तरफ यूँ लगे फैलता ज़हर,
हालात हैं खराब मुहब्बत के शहर में |

रिश्तों के हो रहे यूँ कतल बेरुखी से क्यूँ .
जब से उठे नकाब मुहब्बत के शहर में |

इस शहर-ए-बे-चिराग़ से ले जाएँ भी तो क्या,

है बे-रहम ख्वाब मुहब्बत के शहर में |
 
हर्ष महाजन
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Harash Mahajan on June 26, 2016 at 11:07pm

आ० बृजेश कुमार 'ब्रज' जी पसंदगी का बहुत बहुत शुक्रिया !!

सादर !!

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 26, 2016 at 6:00pm

वाहह वाहह बहुत ही खूबसूरत लाजबाब

Comment by Harash Mahajan on June 26, 2016 at 10:32am

आ० सतविन्द्र कुमार जी आपके स्नेहिल प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत शुक्रिया !

सादर!!

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on June 26, 2016 at 8:43am
उम्दा सृजन।हार्दिक बधाई आदरणीय।
Comment by Harash Mahajan on June 25, 2016 at 11:46pm

आ० Dr Ashutosh Mishra जी आपके उत्साहवर्धन के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया !!

सादर !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 25, 2016 at 9:20pm
इस रचना के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें आदरणीय

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