For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनी टपरिया, अपनो सिलसिला (लघुकथा)

"अबकी हमयीं करेंगे जो काम, तुम औंरें नीचे ठांड़े रईयो, जैसी कहत जायें, करत जईयो!" यह कहते हुए ज़िद्दी बाबूजी ऊपर चढ़ गए छप्पर सही करने।

"का फ़ायदा ई घास-फूस के छप्पर से, आंधियन में फिर सब बिखर जैहे!" कन्हैया ने व्यंग्य करते हुए कहा।

"बेटा, आंधी-तूफ़ानों से कैसे निपटो जात है, जो हमईं खों मालूम है, तुम औरों ने तो कछु नईं भोगो अभै तक!" बाबूजी ने कन्हैया और उसकी पत्नी के हाथों कुछ बल्लियें (लकड़ियें) और घास-फूस लेते हुए कहा- "झुग्गी झोपड़ियों में ज़िन्दगी ग़ुज़ारवे को लम्बो तज़ुर्बा है मोय, क़ुदरत तो क़ुदरत , इंसानों के थोपे भये आँधी-तूफ़ान झेल लये हमने!"

"तुमने झेल लये, हम न झेल पेहें! बेर-बेर जोड़वे-तोड़वे को जो काम हम न कर पेहें बेर-बेर, के दई हमने!" लल्लन ने नीचे से चिल्लाकर कहा।

दोनों बेटों को समझाते हुए बाबूजी बोले- " जोड़वे-तोड़वे और बनावे-मिटावे को जो सिलसिला हर जगा चलत है , हमरी बस्तियन में, राजनीति में और सरकार में भी! जब नेता और सरकार हमरे संग बदमाशी करत हैं, तो हमखों भी जोई सिलसिला चलन देने हैं, झुग्गियन में ही रहने हैं, ऐन खाओ-पियो, मेहनत करो, पैसा जोड़ो, पैसा! बाक़ी ऊपर वाले की टपरिया सभई में 'बेस्ट'!"

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 985

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 3, 2016 at 11:26am
रचना पर उपस्थित होने पर व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय तेज वीर सिंह जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on June 20, 2016 at 2:07pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी! बेहतरीन  प्रस्तुति!

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 20, 2016 at 3:41am
दरअसल मैं यह समझा कि लघुकथा संदर्भ में 'क़िस्साग़ोई' एक नकारात्मक बात है, तो मैं आपकी टिप्पणी को नकारात्मक लेते हुए चिंतित हो गया था, इसलिए सुधार संबंधी मार्गदर्शन की बात कह रहा था। कृपया अन्यथा न लीजिएगा आदरणीय सौरभ जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 20, 2016 at 12:08am
मेरे साथ शायद यही समस्या है कि अपनी बात सही तरह से नहीं रख पाता हूँ, कृपया अन्यथा न लें आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी। दोनों ही बातें मेरे बारे में ग़लत हैं- // , या तो आप नितांत भोले हैं, या पाठकों की खिल्ली उड़ाने में आपको कुछ अधिक ही मज़ा ....// कृपया मेरे प्रति ऐसी धारणा न बनाइयेगा। मैं भी अपनी टिप्पणी में अभिव्यक्ति सुधारने का प्रयास करूँगा। सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2016 at 11:33pm

अदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, या तो आप नितांत भोले हैं, या पाठकों की खिल्ली उड़ाने में आपको कुछ अधिक ही मज़ा आता है. दोनों दशाएँ रचनाकर्म के लिहाज से उचित नहीं. ऐसा ही मैं जानता हूँ. आप यदि कुछ सोच-जान कर बैठे हों तो आपकी समझ से वही उचित है. जहाँ तक इस प्रस्तुति के ’लघुकथा हो जाने’ की सूरत का सवाल है, जो कि आपका महती सवाल है, तो इस विन्दु पर आपकी नज़र में ’लघुकथा जानने वालों’ की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा करें. 

भाई, लगे हाथों मैं यही बता सकता था.

सादर

 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 19, 2016 at 10:59pm
रचना पर समय देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी। यदि यह भी क़िस्सागोई है,तो कृपया लगे हाथ इसे लघुकथा में रूपांतरित करने के उपाय भी बताइयेगा तो आपकी टिप्पणी पूर्ण होकर मुझे मार्गदर्शित कर सकेगी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2016 at 5:23pm

आपकी किस्साग़ोई ! वाह वाह वाह !  मुग्ध कर दिया आपने आदरणीय.. हृदयतल से शुभकामनाएँ. 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 19, 2016 at 1:59am
सौभाग्य है मेरा कि आपने भी मेरी रचना पर समय दिया। जी बिलकुल, आपके विचारों से सहमत हूँ। लेकिन यही यथार्थ है न। स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शरदिन्दु मुकर्जी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on June 18, 2016 at 2:45pm
/जब नेता और सरकार हमरे संग बदमाशी करत हैं, तो हमखों भी जोई सिलसिला चलन देने हैं, झुग्गियन में ही रहने हैं,/ ....क्या यहाँ सकारात्मकता पीछे नहीं हट जाती है? वैसे जिस माहौल का वर्णन है और जिसके मुँह से यह कहलवाया गया है वहाँ सटीक ही बैठता नज़र आता है.
/बाक़ी ऊपर वाले की टपरिया सभई में 'बेस्ट'/....यहाँ एक सहज सरल इंसान की गम्भीर दार्शनिक मनोभावना सहज ढंग से व्यक्त हुई है.....मेरी समझ के अनुसार यही अंश कथा को सशक्त बना रहा है. साधुवाद आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब.
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 17, 2016 at 4:27pm
आंचलिक बुन्देली बोली में पहली बार रचना लिखने की कोशिश की है, आपको भी अच्छा लगा, रचना पसंद आई, मेरा प्रयास सफल हुआ। जी, मैंने भी कई बार सोचा था कि /बेर-बेर/ को केवल एक बार ही रहने दें, लेकिन अंततः दिल ने यही कहा कि हम ऐसा दोहराव अनौपचारिक बोलचाल में प्रायः करते हैं एक ही वाक्य में! उस हक़ीक़त को सजीवता देने के लिए ऐसा ही रहने दिया जानबूझकर। प्रवाह में वार्तालाप करते हुए मुझे वह सहज सा लगा। हालाँकि लघुकथा विधान अनुसार ऐसी पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है। शेष वरिष्ठजन जैसा कहें। रचना पर समय देकर खुलकर अपनी बात कहने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service