एक बड़े ही अनुकूल सर्व सुविधा युक्त घूरे पर बर्षों से घरेलू मक्खियों की पीढ़ियां मजे से जिंदगी बसर कर रही थीं। ऐसे में ना जाने कौन साफ तबियत वाले ने नगर पालिका को घूरा हटाने का आवेदन दे मारा । इसकी खबर जैसे ही मख्खियों को लगी, उनमें खलबली मच गई । उन्हें इतना व्यथित देख,एक बूढ़ी सियानी मक्खी ने सांत्वना दी ।
"अरे इतना क्यूं घबरा रही हो? इतिहास गवाह है, आजतक हमें कोई नहीं मिटा पाया । "
"लेकिन दादी मख्खी! अगर नगर पालिका वाले सचमुच आ गये तो,हम बच्चों को लेकर कहाँ जायेंगे? "
"कहीं नहीं, अब्वल तो वो निकम्में एक बार में आते नहीं, फिर अगर आ मरे भी,तो ये आसपास के इंसान तो नहीं मरे ना !"
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत शुक्रिया आदरणीय परवेज जी!सादर
वाह बहुत ही अचूक कटाक्ष!
मक्खिया भी समझदार और बेख़ौफ़ हो गयी हैं अच्छा कटाक्ष है हमारे सफाई के नारों पर , बधाई प्रेषित है आपको प्रिय राहिला जी
हार्दिक बधाई राहिला जी!बेहतरीन लघुकथा!
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