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एक और प्रयास/सुरेश कुमार ' कल्याण '

करके याद हमें अब दिल जलाते हैं वो,
बेवफाई का मातम अब मनाते हैं वो।

हमारे बीते हुए लम्हों को याद कर,
अब अपना पल पल बिताते हैं वो।

जाहिर हो जाता है उनके चेहरे पे गम,
खुशी के लम्हे भी गम में बिताते हैं वो।

खुश नजर आने की कोशिश करते हैं मगर,
दिवानगी में दुःख की बात कह जाते हैं वो।

हमें तरस आता है उनकी हालत पर,
पर हमारे सामने आने से कतराते हैं वो।

रात में बिस्तर पर करवटें बदलते हुए,
फिर भी हमारी यादों में खो जाते हैं वो।

मौलिक व अप्रकाशित
सुरेश कुमार ' कल्याण '

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Comment

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 3, 2016 at 9:27am
आदरणीय श्री सुशील सरना जी बहुत बहुत धन्यवाद।आप यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें हम कोशिश करते रहेंगे और आप महानुभावों के सहयोग से सीखने का प्रयास करते रहेंगे।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 3, 2016 at 9:25am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत धन्यवाद।
आप लोगों के सानिध्य में रहकर सीखने का प्रयास कर रहा हूं।
Comment by Sushil Sarna on June 2, 2016 at 6:51pm

आदरणीय सुरेश जी सुंदर प्रस्तुति  के लिए हार्दिक बधाई। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 2, 2016 at 6:36pm

आदरणीय सुरेश भाई , गज़ल कहने का प्रयास अच्छा हुआ है , बधाई आपको । मंच पर उपलब्ध , 'ग़ज़ल की बातें' के पाठों का अध्ययन करें अगर ग़ज़ल कहने की इच्छा हो तो और प्रयास जारी रखें ।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 2, 2016 at 12:10pm
आदरणीया कान्ता राॅय जी अपने सुन्दर विचारों के लिए सादर आभार। प्रयास करूँगा और अधिक सीखने के लिए। बस आप यूँ ही स्नेह बनाये रखें।
Comment by kanta roy on June 2, 2016 at 11:28am
खुश नजर आने की कोशिश करते हैं मगर,
दिवानगी में दुःख की बात कह जाते हैं वो।....... वाकई में बहुत बढ़िया लिखते है आप । यहाँ मंच पर " गजल की बातें " ज्वाईन कीजिये ,बहर साधने और तक्तीया संबंध में बहुत जानकारी है जो आपकी गजल को दुरूस्त होने में मददगार साबित होंगी । वहाँ आप अपनी उलझनों को प्रश्नावली और प्रतिक्रियाओं में आये जबाव में मार्गदर्शन पा सकते है । फिर भी कोई दुविधा हो तो आप संबंधित प्रश्न वहाँ रख सकते है । सादर ।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 2, 2016 at 9:03am
आदरणीय समर कबीर साहब व श्रद्धेय सौरभ पांडे जी मार्गदर्शन के लिए दिल की गहराईयों से धन्यवाद।
Comment by Samar kabeer on June 1, 2016 at 10:38pm
मिसाल के तौर पर अगर आपका मतला यूँ करें तो बह्र में हो जायेगा:-
"याद करके हमें दिल जलाते हैं वो
बेवफ़ाई का मातम मनाते हैं वो"

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Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2016 at 10:15pm

// मैं गजल के बारे में कुछ भी नहीं जानता। बस जो दिल में आता है उसे शब्दों में पिरोने की कोशिश करता हूं और जो बन जाता है उसे ही प्रेषित कर देता हूँ //

ऐसा नहीं है, आप कमसे कम काफ़िया और रदीफ़ के बर्ताव से बहुत कुछ परिचित हैं. आपकी परेशानी पंक्तियों (मिसरों) को सही ढंग से रखने को लेकर है. जिसे पंक्तियों को बहर में साधना कहते हैं. इसे ही जाँचने को तक्तीह करना कहते हैं. जो कि मैं और आदरणीय समर भाई आपसे पूछ रहे थे.

आप ऐसे मंच पर हैं जहाँ ग़ज़ल की विधा को लेकर बहुत से आलेख उपलब्ध हैं. आप उन आलेखों का एक-एक कर मनोयोगसे अध्ययन करें. आप यदि संयत ढंग से प्रयास करें तो आपको बहुत सफलता मिलेगी. उसके बाद इस मंचपर आदरणीय समर कबीर साहब जैसे कई गुणीजन हैं जो आपके उचित प्रश्नों का समुचित उत्तर दे सकते हैं.  फिर सारा कुछ आपके पक्ष में होता जायेगा. लेकिन बातवही है, आप कितना तैयार हैं और आप कितनी मेहनत करना चाहते हैं. 

शुभेच्छाएँ

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 1, 2016 at 9:53pm
श्रद्धेय सौरभ पांडे जी व श्रद्धेय समर कबीर साहब प्रणाम करता हूँ आप ज्ञानी जनों को। आदरणीय मैं गजल के बारे में कुछ भी नहीं जानता। बस जो दिल में आता है उसे शब्दों में पिरोने की कोशिश करता हूं और जो बन जाता है उसे ही प्रेषित कर देता हूँ। आगे पाठक पर निर्भर करता है कि वह इस का क्या अर्थ लेता है।मैं गजल के अरकान व पंक्तियों के वजन के बारे में कुछ नहीं जानता। टिप्पणी के लिए आपका हृदय की गहराईयों से धन्यवाद।कृपया इसी प्रकार अपना स्नेह बरसाते रहें।

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