2122--1212--22
उनकी नज़रों से जो उतर जाए |
आसरा ढूंढ़ने किधर जाए |
कर लिया है यक़ीन उनपे मगर
डर है यह भी न वो मुकर जाए |
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए |
भीड़ आए नज़र क़ियामत सी
शोख़ उनकी नज़र जिधर जाए |
मिल गया जब खिताबे दीवाना
उनके कूचे से कौन घर जाए |
जिसके घर का पता नहीं कोई
कैसे उस तक कोई ख़बर जाए |
दिन में तस्दीक़ आए रात नज़र
ज़ुल्फ़ उनकी अगर बिखर जाए |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा , ग़ज़ल में इतनी गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत , शुक्रिया ,महरबानी । ग़ज़ल को वक़्त कम दे सका उस वजह से वादा शब्द नहीं ला सका । आपने सही लिखा है, मैंने यूँ तब्दील किया है । उसके वादे पे तो किया है यक़ीं ------डर मगर है न वो मुकर जाए। --------शुक्रिया
मोहतरम जनाब गिरिराज ,साहिब , ग़ज़ल में इतनी गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत , शुक्रिया ,महरबानी
मोहतरम जनाब रवि शुक्ल ,साहिब , ग़ज़ल में इतनी गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत , शुक्रिया ,महरबानी
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए |---वाह्ह्ह्ह
सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० तस्दीक जी बस दुसरे शेर में बात स्पष्ट नहीं है
उनके वादों पे कर लिया तो यकीं
डर मगर है न वो मुकर जाए ---अब देखिये शायद बात बनी
इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कुबूलें
आदरणीय तस्दीक भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने , दिली बधाइयाँ आपको ।
आदरणीय तसदीक अहमद जी आपकी गजल पढ़ी तरही मुशायरे 70 केे काफिये और रदीफ पर इस छोटी बह्र में भी आप अच्छे ,खयाल लेकर आये है
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए | बहुत खूब
मोवाईल से कल दाद ओ मुबारक केे लिये कोश्ािश की थी पर हैंंग हो गया तो आज स्वीकार करें । सादर ।
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया , महरबानी
दूसरे शेर में लफ्ज़ वादा नहीं आ पाया है। .......आप बिलकुल सही कह रहे हैं ,शुक्रिया
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