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नव गीत उसने यूँ ही कहा गीत रचता हूँ  मैं आप हैं कि मुझे आजमाने लगे

यह हुनर तो मिला है मुझे जन्म से  मांजने में इसे पर जमाने लगे

गीत रचना हँसी- खेल सा कुछ नहीं

यह सभी को मिला शाश्वत दंड सा

टूटता है ह्रदय जब सुमन-दंश से

तब महकता है नव-गीत श्रीखंड सा

ताप तुमने विरह का सहा ही नहीं प्रेम का ग्रन्थ मुझको थमाने लगे

नेह की भावना में प्रखर भक्ति हो

एक पूजा उदय हो उदय शक्ति हो

प्यार-व्यापार हो कामना से रहित

ज्योति सी जल रही दिव्य अनुरक्ति हो

सिद्ध तब गीत होता है जब भावना मौन अंतस में धूनी रमाने लगे

हो करुण–रस बसा जब ह्रदय-कोश में

शारदा से मिला मुक्त वरदान हो

वेदना का प्रभंजन उठे काल सा

आंसुओं से भरा भाव अवदान हो

गीत तब शीत के पुष्प सा हो उदय रौप्य के छत्र सा चमचमाने लगे


जो अभावों में पलता रहा बेखबर

जिसको मिलता नहीं कुछ भी संसार में

जंग जिसने लड़ी जिदगी की सदा

जिसने कांटे सजाये थे अभिसार में

भूल जाता है दुखिया सभी क्लेश जब भावना में मनोगति समाने लगे

आज कोई भी वीणा बजाता नहीं

साज है किन्तु कोई सजाता नहीं

वीणावादिनिको कवि पूजते हैं सदा

हंत ! कोई हमें राग आता नही

सबमनीषी यहाँ पर स्वयम् सिद्ध हैं कवि बने कीर्तिकंचन कमाने लगे

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on April 3, 2016 at 3:35pm

पंक्ति दर पंक्ति पढ़ते आनन्द आता गया। हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on April 2, 2016 at 7:48pm

गीत रचना हँसी- खेल सा कुछ नहीं
यह सभी को मिला शाश्वत दंड सा
टूटता है ह्रदय जब सुमन-दंश से
तब महकता है नव-गीत श्रीखंड सा
ताप तुमने विरह का सहा ही नहीं प्रेम का ग्रन्थ मुझको थमाने लगे
वाह आदरणीय वाह बहुत ही सुंदर नवगीत ... मैं आदरणीय रमबंली गुप्ता जी की टिप्पणी का समर्थन करता हूँ कि ये महागीत है। इस प्रवाहमयी सुंदर शब्दों की कल कल करती गीत सरिता की प्रस्तुति के लिए दिल बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ. गोपाल भाई साहिब।

Comment by रामबली गुप्ता on April 2, 2016 at 11:38am
ये नवगीत नही महान गीत है। हृदयतल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय गोपाल नारायण जी।सादर नमन आपको। आप देखेगें इस गीत में 212 का बह्र है जिसके कारण गेयता और प्रवाह बहुत ही सुंदर हो गया है।

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