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अक्षम्य कर्म (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"अक्षम्य कर्म"- (लघुकथा)

पड़ोसन के लिए बहुत ही जिज्ञासा का विषय था कि सामने वाले मकान से कल की तरह आज रात को भी ज़ोर से रोने की आवाज़ें क्यों आ रहीं थीं। खिड़की से झांक कर देखा तो पाया खन्ना साहब की पत्नी प्रियंका ही रो रही थी।

साहस जुटाते हुए , उनके घर जाकर जब उसने प्रियंका से वज़ह पूछी तो मुश्किल से उसने कहा- "मेरे पिताजी ने मायके आने के लिए सख़्ती से मना कर दिया है! पति ने मुझसे किनारा कर लिया है। सास देवरानी के यहाँ चली गई हैं ! सब मुझे ही कोस रहे हैं!"

"लेकिन क्यों? तुमसे ऐसा क्या हुआ?"- उमा ने पूछा।

"कुछ दिन पहले सास से झगड़ा हो गया था, जब उन्होंने मेरे लिए कुछ ग़लत शब्द बोले, तो आपा खोकर मैंने उन्हें दो थप्पड़ मार दिए थे!"

" फिर तो, सच में, तुमको रोने की बहुत ज़रूरत है।"

पड़ोसन उल्टे पैर तुरंत अपने घर लौट आई।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Rahila on February 10, 2016 at 3:09pm
बहुत ही शानदार रचना आदरणीय उस्मानी जी!बात जुबान की थी जुबान दराजी बेशक कुबूल की जा सकती थी लेकिन इस रिश्ते में ऐसे कृत की कोई माफी नहीं । बहुत बेहतरीन, बहुत बधाई । सादर

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Comment by Saurabh Pandey on February 10, 2016 at 12:10am

क्या ग़ज़ब की घटना है ! कर्म तो वाकई अक्षम्य था प्रियंका का. प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 28, 2016 at 12:11am

आदरणीय उस्मानी जी, बहुत खूब. हार्दिक बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 27, 2016 at 8:52pm

लघुकथा के रूप में बहुत अच्छी प्रस्तुति है, पर क्रोध में आपा  खोने से अफ़सोस के सिवा क्या हासिल हो सकता है?

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 27, 2016 at 10:30am
वाह.... तारीफ़, सबक़ व हौसला अफ़ज़ाई के संगम वाली टिप्पणी करने के लिए तहे दिल बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कान्ता राय जी।
Comment by kanta roy on January 27, 2016 at 9:27am

वाह !!! लघुकथा अपनी लघुता के सौंदर्य को परिभाषित करती हुई ,घटना को बिना किसी छदम व् काल्पनिक आवरण के लिबास में लपेटे हुए ,
ऐसे वाक्यातों के बाद की परिस्थितियां व् समाज के मनोविज्ञान का वास्तविक का चित्रण यथार्थ और बिलकुल सहज़ता से ब सार्थक सन्देश रोपित किये है। इतनी कसी हुई लघुकथा देखकर मन दंग -दंग हो उठा।

न एक शब्द अधिक न ही एक शब्द कम।
इस शानदार ,मुग्ध करती लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करे आदरणीय शहज़ाद जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 26, 2016 at 11:41pm
सादर बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद प्रोत्साहित करने के लिए जनाब समर कबीर साहब व जनाब तेज वीर सिंह साहब। मेरी नज़र में //अक्षम्य कर्म// से मतलब है- ऐसा कर्म/हरकत जिसकी कोई माफ़ी/क्षमा मान्य नहीं है। कोई त्रुटि हो तो कृपया मार्गदर्शन दीजिएगा।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 26, 2016 at 7:03pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!बहुत शानदार  प्रस्तुति!

Comment by Samar kabeer on January 26, 2016 at 5:48pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,आपकी लघुकथा हमेशा की तरह शानदार है,ढेरों बधाई स्वीकार करें !

"अक्षम्य कर्म"का अर्थ बताएं प्लीज़ !

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