For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाने क्यों

क्या ढूँढ़ने उतरते हो
रात के अंधेरे में ओ कोहरे,
चुपचाप, इस धरती की छाती पर
फिर अक्सर थक कर सो जाते हो
पत्तियों के ठिठुरते गात पर
और सहमी, पीली पड़ गयी
तिनके की नोक पर –
गाड़ी के शीशे से
न जाने कहाँ झाँकने की कोशिश में
चिपक जाते हो तुम,
अक्सर.
सुबह की थाप तुम्हें सुनायी नहीं देती
उद्दण्ड बालक की तरह
धरती का बिस्तर पकड़कर,
मुँह फेरकर सोये रहते हो
जब तक कि फुटपाथ पर
रात भर करवटें बदलता हुआ मजदूर
अपनी कुल्हाड़ी, फावड़ा चलाना शुरू नहीं करता;
ढाबे के चौखट पर
पहली कली के खिलने की तरह
पाँच साल का “छोटू”
उठकर बैठ नहीं जाता,
जब तक सड़क किनारे
पानी भरते हुए
वह
गाड़ी के शीशे से तुम्हें हटाकर
अपना नाम लिखने की कोशिश नहीं करता –
मगर फिर भी
अक्सर,
वह सर्वशक्तिमान शिशु
हार मान ही जाता है,
और तुम
रात के अंधेरे से निकलकर
दिन के उजाले पर
नक़ाब बनकर
इठलाते रहते हो....जाने क्यों!!!!

.

(मौलिक व अप्रकाशित)            

 शरदिंदु/लखनऊ/12.12.2015

Views: 504

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 30, 2015 at 3:32am
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी, आपकी प्रतिक्रिया हमेशा विद्वतापूर्ण होती है....इस दृष्टि से मैं आपकी टिप्पणी का आसरा लेकर गर्व महसूस कर सकता हूँ. मेरा साहस बढ़ाने के लिए हृदय से आभार. सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 30, 2015 at 3:22am
आदरणीय समर कबीर साहब, आप मेरी रचना पर आए और उसे अपने प्यार और अपने विचार से समृद्ध किया. मैं आपका ऋणी हूँ. सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on December 30, 2015 at 3:18am
श्रद्धेय विजय निकोर जी, आपसे अनुमोदन पाना मेरे लिए बहुत बड़ा पारितोषिक है. आपकी निश्छल उदारता मेरा पाथेय है. नमन.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 17, 2015 at 7:44pm

वह सर्वशक्तिमान शिशु
हार मान ही जाता है,
और तुम
रात के अंधेरे से निकलकर
दिन के उजाले पर
नक़ाब बनकर
इठलाते रहते हो....जाने क्यों!!!!---- अति सुन्दर दादा , वैचारिक सांद्रता सदैव आपकी कविता को विशेष बनाती है . बहुत बहुत बधाई

.

Comment by Samar kabeer on December 16, 2015 at 10:34pm
जनाब शरदिंदु जी ,आदाब,बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी,अच्छी लगी,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 2:04pm

 // क्या ढूँढ़ने उतरते हो
रात के अंधेरे में ओ कोहरे,
चुपचाप, इस धरती की छाती पर
फिर अक्सर थक कर सो जाते हो
पत्तियों के ठिठुरते गात पर
और सहमी, पीली पड़ गयी
तिनके की नोक पर –// 

और फिर निम्न...

//और तुम
रात के अंधेरे से निकलकर
दिन के उजाले पर
नक़ाब बनकर
इठलाते रहते हो....जाने क्यों!!!!  //

इतने कोमल भाव... आनन्द आ गया आपकी रचना पढ़ कर, आदरणीय शरदिंदु जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
9 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सम्माननीय ऋचा जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल तकआने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"//मशाल शब्द के प्रयोग को लेकर आश्वस्त नहीं हूँ। इसे आपने 121 के वज्न में बांधा है। जहाँ तक मैं…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है हर शेर क़ाबिले तारीफ़ है गिरह ख़ूब हुई सादर"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. भाई महेन्द्र जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की सलाह से यह और…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
7 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
8 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
8 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service