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लड़ाई आज सत्ता की -(ग़ज़ल ) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

1222    1222    1222    1222

भला सच यार कब  वैसे  चुनावी  आस को होना
चुराकर आम के सपने  सदा गुम खास को होना /1

हकीकत  लोकराजों  की  जो नौकर है तो नौकर है
भले कागज की बातों में है मालिक दास को होना /2

लड़ाई आज सत्ता की  बदलती रंग गिरगिट ज्यों
बहाना  फिर  फसादों  का  वही  इतिहास को होना /3

कहाँ  तक  हम  करें  बातें  बना  सौहार्द्र  जीने की
खपा इतिहास  में माथा  खतम विश्वास को होना /4

सुना कल शीत की बरखा बहाकर ले गई सबकुछ
मगर  बदनाम  चैरफा   सदा  चैमास   को  होना /5

पिलाना  हो  पिला  साकी  न  तू  मगरूर  हो इतरा
तड़पकर भाग्य में लिक्खा बुझी हर प्यास को होना /6

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 9, 2015 at 11:30am

आ० भाई सुशील जी अपनी पस्थिति से ग़ज़ल का मन बढ़ने और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l

Comment by Sushil Sarna on December 8, 2015 at 12:37pm

पिलाना हो पिला साकी न तू मगरूर हो इतरा
तड़पकर भाग्य में लिक्खा बुझी हर प्यास को होना /6

वाह आदरणीय बहुत ही सुंदर अशआर बन पड़े हैं। आज के हालात पर लिखी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।

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