For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धर्म – -( लघुकथा ) –

तीन दिन से शहर में कर्फ़्यु लगा हुआ था!चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था!सडक पर एक मक्खी भी नहीं दिख रही थी! उसका  पूरा परिवार एक शादी में दिल्ली गया हुआ था!शहर में दंगों के कारण उनका लौटना भी नहीं हो पा रहा था!वह घर पर अकेला ही था!बुढापे और बीमारी के कारण वह शादी में नहीं जा सका था! तीन दिन से दूध वाला,सब्ज़ी वाला ,कामवाली बाई,खाना बनाने वाली बाई आदि भी नहीं आ रहे थे!डाइबिटीज़ और ब्लड प्रैसर की दवा भी खत्म हो गयी थी!जैसे तैसे डबल रोटी के सहारे दिन गुजार रहा था!सुबह से उसे चक्कर आ रहे थे क्योंकि दवा नहीं खाई थी! दिन ढलते ढलते वह हिम्मत कर दवा लेने निकल पडा!मुहल्ले में कोई दुकान खुली नहीं दिख रही थी!वह चौराहे की ओर चल दिया!जैसे ही चौराहे पर पहुंचा, पीछे से कडक आवाज़ आई:

"हाथ ऊपर कर ,नहीं तो गोली मार दूंगा"!

उसने सत्तर साल की उम्र में भी नौजवानों जैसी फ़ुर्ती से हाथ उठा दिये!दो तीन पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और ऐसे घूरने लगे जैसे वह कोई आतंकवादी हो!

"कौन है बे"!

उससे आधी उम्र के पुलिस वालों का यह संबोधन उसे अंदर तक चीर गया!उसने थकी और घबराई हुई आवाज़ में उत्तर दिया:

"भाई, मैं इसी मोहल्ले का निवासी हूं,मेरी दवा खत्म हो गयी थीं ,वही लेने निकला था"!

"और कितना जीना चाहता है भाई,तेरे पैर तो कब्र में लटक रहे हैं"!

वह कुछ बोल पाता तब तक दूसरे पुलिसवाले ने सवाल दाग दिया,"चल अपना नाम और धर्म बता"!

अब तक वह डर से पसीना पसीना हो चुका थ!मरता क्या ना करता!डरते हुए नाम और धर्म बता दिया!

तीसरा पुलिस वाला चिल्लाया,"झूठ बोल रहा है साला, इसका पाज़ामा खोल कर देखो"!उस पुलिस वाले की बात सुन कर वह गिरते गिरते बचा!उसने दौनों हाथों से मज़बूती से अपने पाज़ामे का नाडा थाम लिया!मगर उन पुलिस वालों के हाथ उसके हाथों से ज़्यादा मज़बूत थे!

वह बिना दवा लिए , ज़िंदा लाश की तरह घर की ओर वापस लौट रहा था! पुलिस वालों को अपना धर्म दिखा कर!

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 713

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2015 at 11:36am

आ० भाई तेजवीर जी , निसंदेह लागूकथा उत्क्रिस्ट हुई  है किन्तु मैं भी भाई विजय शंकर जी की बात से सहमत हूँ l इस तरह की सोच बनाने में कही न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं l पुलिस को कभी भी निष्पक्ष रूप से काम करने ही नहीं दिया जाता है .जो भी दाल आता है अपनी विचार धरा के हिसाब से काम करने को कहता है . उनमें भी कही न कहीं इससे कुंठा भर जाती है और आज जिस तरह का माहौल बना दिया गया है उसमे नतीजे ऐसे ही निकलते हैं . जरूरत समूचे सामाजिक वातावरण को खंगालने की है .

Comment by TEJ VEER SINGH on December 4, 2015 at 11:23am

हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी!आप की टिप्पणी का मुझे बिलकुल भी बुरा नहीं लगा! आप जैसे गुणी जनों की सार्थक और आलोचनात्मक  टिप्पणी से ही एक रचनाकर को उचित मार्ग दर्शन मिलता है!मुझे यह लघुकथा पोस्ट करते समय ही इस प्रकार की टिप्पणी आने की आशंका थी!किसी पाठक की आलोचना को विवाद के रूप में नहीं लेना चाहिये!अन्यथा आपका लेखनकार्य बाधित होने की शंका बनी रहती है!मैं आपके विचारों का तहे दिल से सम्मान करता हूं!मेरा निवेदन केवल इतना है कि यह मात्र एक लघुकथा नहीं है !यह मेरे एक परिचित के साथ घटित हुयी घटना है!जो न हिन्दू था और न मुसलमान! क्या एक सत्तर वर्षीय बुजुर्ग के कथन पर विश्वास नहीं किया जा सकता!फ़िर इस प्रश्न का औचित्य क्या था!क्या पुलिस को जाति धर्म के दायरे में कार्य करना चाहिये!क्या पुलिस का यह रवैया प्रशंसनीय है!क्या इस तरह की शासन व्यवस्था उचित है!आपने इस लघुकथा की एक विशेषता पर गौर नहीं किया!इसमें किसी पात्र के नाम,जाति और धर्म का जिक्र नहीं है!लघुकथा का मकसद तो पाठक ही निश्चित करे तो बेहतर होता है!सादर!

Comment by Nita Kasar on December 3, 2015 at 8:48pm
धर्म के नाम पर ये पुलिस का रौंब मानवीयता की हद पार कर जाता है ये भूल जाते है सरकार इन्है इस सुलूक के लिये तनख़्वाह नही देती है पुलिस की बर्बरता का कला चिट्ठा खोलकर रख दिया है ।दिली बधाईयां क़ुबूल करिये आद०तेजवीर सिंह जी कथा के ज़रिये आपने बेबाक़ी से लिखने का साहस किया है ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 3, 2015 at 8:43pm
आदरणीय तेजवीर सिंह जी , आपको मेरी टिप्पड़ी बिलकुल अच्छी नहीं लगेगी , पर एक लेखक का दायित्व यह है ही नहीं कि वह वह ही लिखे जो सबको पसंद आये , वह भी माहौल और परिवेश की उपेक्षा करते हुए। मेरा निवेदन है कि प्रथम तो यह कहानी नई नहीं है , बहुत कम शब्दों में यह संभतः पचास वर्ष पूर्व लिखी जा चुकी है , दूसरी बात इस कथा से क्या फायदा होगा , किसको होगा , कितना होगा , कृपया अवश्य विचार करें।
आप बहुत अच्छी कहानियाँ लिखते हैं , इसमें संदेह नहीं , पर इस कहानी का मक़सद कहीं भ्रमित भी कर रहा है , विचार करें।
सादर।
Comment by TEJ VEER SINGH on December 3, 2015 at 7:47pm

हार्दिक आभार आदरणीय मीना जी!लघुकथा को समय देने,उसे सराहने हेतु पुनः आभार!

Comment by meena pandey on December 3, 2015 at 7:43pm

बहुत ही बेबाकी से इस लघुकथा  की रचना की है आपने बधाई इस उम्दा   लघुकथा  के  लिए  तेजवीर  जी 

Comment by TEJ VEER SINGH on December 3, 2015 at 7:29pm

हार्दिक आभार आदरणीय नादिर खान साहब!आप द्वारा लघुकथा को अमूल्य समय देना, उसे पसंद करना,उस पर इतनी बेवाक टिप्पणी करना मुझे आल्हादित कर गया!काफ़ी समय से मेरे मन में द्वंद चल रहा था कि इसे पोस्ट करूं कि नहीं!लेकिन आपकी विवेचना और विश्लेषण से मुझे एक सुक़ून मिला तथा मेरी हौसला अफ़ज़ाई भी हुई!पुनः हार्दिक आभार!

Comment by नादिर ख़ान on December 3, 2015 at 5:44pm

आदरणीय तेज वीर साहब सत्य को उजागर करती आपकी लघुकथा दिल को चीरती हुयी निकल गयी । निसन्देह उच्च कोटि का रचना कर्म हुआ है । आपको बधाई ही बधाई इस बेबाक रचनाकर्म के लिए...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
12 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
13 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service