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न  जग  तेरा  है .....

न  जग  तेरा  है  न  मेरा है
बस  दो  साँसों  का  डेरा  है 
है पल भर की बस भोर यहां 
पल  अगला  घोर  अँधेरा है 
न जग तेरा है ....
मैं पथ  का  कोई  शूल कहूँ 
या  जीवन  कोई  भूल कहूँ  
इक पल यहाँ पर है उत्सव  
पल  दूजा  दुख का  डेरा  है 
न जग तेरा है ....
स्वर  प्रेम नीड को ढूंढ रहे 
दृग पीर  नीर  में  मूँद रहे 
है नीरवता  हर  ओर यहां 
विष सेज पे सुप्त उजेरा है 
न जग तेरा है ....
अभिलाष हृदय की तृषित रही  
और  श्वास   देह  की  मौन हुई
जीवन के पथ  का  मरघट  ही
बस  अंतिम   रैन   बसेरा   है
न  जग  तेरा  है .....


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on December 1, 2015 at 6:45pm

आदरणीय   Ajay Kumar Sharma जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Ajay Kumar Sharma on November 28, 2015 at 7:03pm

सुशील सरना साहब दिल को छू जाने वाली मार्मिक रचना के लिये हृदय से बधाई देता हूँ। स्वीकार करें।

Comment by Sushil Sarna on November 26, 2015 at 12:50pm

आदरणीय  TEJ VEER SINGH     जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 25, 2015 at 7:03pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी!बेहद मार्मिक और सार गर्भित रचना!

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