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“आज उदास क्यूँ हो बेटा क्या सोच रहे हो ”? जलेबी पकड़ाते हुए पापा ने उसकी आँखों में देखते हुए  पूछा| “पापा मैं एक बहुत बड़ी दुविधा में हूँ आपको तो पता है मैं चित्रकला और काव्य लेखन  दोनों ही  विधाओं को पसंद करता हूँ तथा दिन रात मेहनत करता हूँ आगे अपना कैरियर भी इन्हीं में से किसी एक को लेकर बनाना चाहता हूँ” वैभव ने कहा | “तो फिर इसमें कैसी दुविधा है बेटा”?

“पापा मैं तो दोनों में  ही अपने को कुशल समझता था पर चुनाव करने में असमंजस में था तो मैंने सोचा क्यूँ न मैं इन विधाओं के पारंगतों से ही पूछूँ पहले मैं चित्रकला  गुरु के पास गया तो उन्होंने कहा- “तुम अच्छे लेखक हो  बहुत अच्छी कवितायेँ  लिखते हो उसी में कैरियर बनाओ”| फिर मैं साहित्य गुरु के पास गया तो उन्होंने कहा- “तुम चित्रकला में निपुण हो बहुत शानदार पेंटिंग करते हो , तुम्हारी कवितायेँ अच्छी तो हैं पर कोई ख़ास बात नहीं है उनमें सो चित्रकला चुन सकते हो”

 तो पापा मैं तो दोनों में ही फेल हो गया अब क्या करना है इसी पशोपाश में हूँ” वैभव ने रुंआसा होते हुए कहा |

“बेटा तुम अपने को फेल कैसे कह सकते हो सिक्के के दूसरे पहलू  को भी तो देखो उन दोनों ने तुम्हे दूसरी विधा में निपुण भी तो बताया है तो तुम दोनों में ही निपुण हुए न? दुनिया बहुत व्यवहारिक  हो गई है आजकल”|

 फिर कुछ रूककर ... “मेरी एक बात समझने की कोशिश करो यदि तुम  मेरे पुत्र न होते और मुझ से बढ़िया जलेबी बनाते और मेरे वाले व्यवसाय को अपनाने की बात करते तो मैं भी यही कहता कि तुम दूसरे व्यवसाय को चुनो तुम्हारी जलेबी में खास बात नहीं है”

“समझ गया पापा”       

(मौलिक एवं अप्रकाशित)   

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2015 at 8:07pm

प्रिय प्रतिभा जी ,आपको  ये लघु कथा पसंद आई दिल से आभार आपका मेरा लिखना सार्थक हो गया | 

Comment by pratibha pande on November 3, 2015 at 7:12pm

ये जलेबी वाला पंच क्या खूब निकाला आपने आदरणीया ,iपिता ने एक सीधे सरल वाक्य में बेटे को वो बात समझा दी जो मोटीशुल्क लेकर भी कोई 'कर्रियर काउंसलर 'नहीं समझा पाता,बधाई इस उत्कृष्ट लघु कथा पर आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2015 at 5:28pm

मिथिलेश भैया ,लघु कथा के सर्वप्रथम  पाठक होने और सराहना करने के लिए आपका बहुत- बहुत आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 3, 2015 at 5:21pm

आदरणीया राजेश दीदी बहुत बढ़िया और स्पष्ट सन्देश के साथ एक सार्थक लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई.

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