For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हारें श्री मुख से
दो शब्द
निकले कि
मैंने कैद कर लिया
अपने हृदय उपवन में !!

अब हर रोज
दिल से निकाल
दिमाग तक लाऊँगी
फिर कंठ तक
फिर मुस्कराऊँगी
चेहरे पर
एक अलग सी
चमक बिखर जाएँगी
बार बार यही
दुहराती रहूंगी
क्योकि
अच्छी यादों को
बार-बार खाद-पानी
चाहिए ही होता है!!

और तब जाके
एक दिन
तैर जायेंगी
सरसराहट
बेकाबू हो
उड़ चलेगा
पूरा शरीर ही
हल्का-फुल्का हो
आकाश के उस पार !!

फिर तुम्हारें ही
महज दो बोल
भारी कर जायेंगे
मन को
और तत्क्षण
ला पटकेंगे मुझे
धरती पर !!

क्यों !
होता हैं न ऐसा
कभी कभी !!!

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 496

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on October 29, 2015 at 8:04pm

आभार आपका आदरणीया | सादर _/\_

Comment by pratibha pande on October 22, 2015 at 7:44pm

अब हर रोज 
दिल से निकाल 
दिमाग तक लाऊँगी 
फिर कंठ तक 
फिर मुस्कराऊँगी .....   कोमल नारी मन  थोड़े में ही खुश होकर उड़नेलगता है ,और फिर धडाम से नीचे भी आ जाता है ,  सुंदर रचना बनी है बधाई आपको आदरणीया सविता मिश्रा  जी 

Comment by savitamishra on October 22, 2015 at 6:36pm

बागी भैया आभार आपका तहेदिल से जो आपको पसंद आई |

Comment by savitamishra on October 22, 2015 at 6:36pm

ऐसा होता हिन् न दी कि कभी दो बोल हमे आसमा में पहुंचा देते और कभी धरा पर गिरा देते| बस मन में आती गयी.... वही लिख गए..|
शुक्रिया दिल से कांता दीदी आपको अच्छी लगी ये आपका बड़प्पन...वर्ना अपन को तो abcd भी न आती
सब सीखा-सीखा हार गए |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 22, 2015 at 8:58am

भावनाओं को सुन्दर अभिव्यक्ति मिली है, अच्छी कविता, बहुत बहुत बधाई आदरणीया सविता जी.

Comment by kanta roy on October 21, 2015 at 11:42pm

बार बार यही
दुहराती रहूंगी
क्योकि
अच्छी यादों को
बार-बार खाद-पानी
चाहिए ही होता है!!----बहुत खूब यादों की बात कही है आपने आदरणीय सविता जी। चाँद अच्छे पल जिंदगी भर के जीने के बहाने हो जाया करते हैं अक्सर। बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
7 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
13 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service