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"प्रत्युत्तर पैरोडी पर" - [लघु कथा]

क्रिकेट मैच जीतने के बाद मोहल्ले के लड़के जश्न मनाते हुए एक टीले पर बैठे हुए थे। मोटू सोनू ने अपनी टाइट शर्ट के बटन सही करते हुए कहा- "अब मैं करता हूँ आमिर खान की नकल ! टी.वी. पे वो नया विज्ञापन देखा है न....
"हम अब भी वहीं के वहीं खड़े हैं, न हम बदले, न हम मोटे हो रहे हैं।
ये तो कमबख़्त कपड़ों की है शरारत, जो अपने आप छोटे हो रहे हैं! "
"वाह, क्या बात है, इसी पे पैरोडी हो जाये। बोल संजू अब तू बोल "- उनमें से एक ने कहा।
संजू शुरू हो गया- "हम अब भी वहीं खड़े हैं, न हम बदले, न हम ऊँचे हो रहे हैं, ... ये तो कमबख़्त नेताओं की है भ्रष्टाचारी, जो नित छोटे और ओछे हो रहे हैं!"
वाह भई वाह.... सही पकड़े हैं संजू मोची जी।"
कोई कोल्ड ड्रिंक्स तो कोई व्हिस्की पीते हुए वाह वाह कर रहा था। तभी अपनी बारी पर कल्लू नाई ने अपनी पैरोडी सुनाई-
"कचड़े वहीं के वहीं पड़े हैं, न हम बदले, न हम सुधर रहे हैं, ....ये तो कमबख़्त वेस्ट बिनों-घूरों की है हिमाकत, ...जो भर-भर के छोटे हो रहे हैं!"
तभी बीच में ही टपक कर एक क्रिकेट विरोधी लड़के ने अपनी तुकबंदी छेड़ दी--
"हाकी में अब भी हम वहीं पड़े हैं, न हम सीखे, न बच्चे सीख रहे हैं,.... ये तो कमबख़्त क्रिकेटरों की है 'कलाकारी', .... जो सब बल्ला ही पीट रहे हैं !"
"बिलकुल सही पकड़े हैं, सलीम भाईजान"-- चुन्ना ने सराहना करते हुए कहा- "लो अब मेरी भी झेलो--
"बाबा जेलों में क्यूँ पड़े हैं, न निकले, न सज़ा पा रहे हैं, .....ये तो नेता-राजनीति की है शरारत, ....जो गवाह मारे जा रहे हैं !"
"वाह, मज़ा आ गया आज तो , अरे ओय कैप्टन अब तू ही कुछ सुना दे पैरोडी में ।"- झबरू ने उसे छेड़ते हुए कहा।
कैप्टन ने कुछ देर सोचा, फिर टीले पर खड़ा हो कर बोला-
"हम धरती बिगाड़ने पर तुले हुये हैं, .... न शुद्ध हवा और न ही शुद्ध पानी पी रहे हैं, .... ये तो वैज्ञानिकों की है बस सनक, जो मंगल पे खारा पानी ढूंढ रहे हैं !"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 7, 2017 at 10:49pm
आपको यह प्रयोग पसंद आया। मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देकर अनुमोदन करने व हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय प्रकाश जी।
Comment by Omprakash Kshatriya on October 8, 2015 at 4:48pm

आदरणीय  शेख जी आप का प्रयोग पसंद आया . बधाई आप को .

Comment by Omprakash Kshatriya on October 8, 2015 at 9:17am

आदरणीय  शेख जी आप का प्रयोग पसंद आया . बधाई आप को .

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2015 at 7:50am
आदरणीय सतविंदर कुमार जी व आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी मेरी इस नवप्रयोगत्मक रचना पर उपस्थिति देकर प्रोत्साहित करने व रचना की पंक्तियों को पसंद करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद। समीक्षात्मक टिप्पणियों की भी आवश्यकता है।
_शेख़ शहज़ाद उस्मानी
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 7, 2015 at 11:51pm
आदरणीय शेख़ सहजाद उस्मानी जी , लाइने तो सभी बहुत अच्छी हैं , पर यह कुछ अधिक अच्छी है , और जरूरी भी है ," "हम धरती बिगाड़ने पर तुले हुये हैं, .... न शुद्ध हवा और न ही शुद्ध पानी पी रहे हैं, ."
बधाई इस मजेदार प्रस्तुति के लिए , सादर।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 7, 2015 at 8:30pm
बहुत बहुत अच्छी कथा आदरणीय शेख साहब।हृदयतल से बधाई स्वीकारें।

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