For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी मैं खेत जैसा हूँ कभी खलिहान जैसा हूँ -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

1222—1222—1222—1222

 

कभी मैं खेत जैसा हूँ, कभी खलिहान जैसा हूँ

मगर परिणाम, होरी के उसी गोदान जैसा हूँ

 

मुझे इस मोह-माया, कामना ने भक्त बनवाया

नहीं तो मैं भी अंतर्मन से इक भगवान जैसा हूँ

 

कभी इक जाति के कारण, कभी बस धर्म के कारण

बँटा हर बार तब समझा कि हिन्दुस्तान जैसा हूँ

 

उजाले और कुछ ताज़ी हवा से घर संवारा है 

सखी तू एक खिड़की है, मैं रोशनदान जैसा हूँ

 

निराशा में नया पथ खोज लेता हूँ सफलता का

किसी मासूम बच्चे की नवल मुस्कान जैसा हूँ

 

कभी जो आसरा अपना, कभी भगवन बताते थे

वही बच्चें जताते हैं,  किसी व्यवधान जैसा हूँ

 

नयन-जल-सा गिरा हूँ आज थोड़ा आचमन कर लो

मैं समुचित अर्ध्य पावन प्रेम के उन्वान जैसा हूँ

 

ये दुनिया राजधानी के किसी सरकारी दफ्तर-सी

जहाँ मैं सिर्फ हिंदी के किसी फरमान जैसा हूँ

 

मेरी गज़लें पढ़ो इक बार फिर आलोचना करना

ग़ज़ल की शिष्ट दुनिया के नए प्रतिमान जैसा हूँ

 

 

----------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर

----------------------------------------------------

Views: 983

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Santlal Karun on October 2, 2015 at 8:27am

आदरणीय मिथिलेश जी,

अति सुन्दर ! भावभीनी, बहुत ही सधी हुई ग़ज़ल ! साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2015 at 10:56am

बहुत सधी हुई सुन्दर ग़ज़ल कही है आओ मिथिलेश जी 

कभी मैं खेत जैसा हूँ, कभी खलिहान जैसा हूँ

मगर परिणाम, होरी के उसी गोदान जैसा हूँ..........वाह ! बहुत ख़ूबसूरती से संघर्ष वेदना और रीते रह जाने को व्यक्त किया है 

 

मुझे इस मोह-माया, कामना ने भक्त बनवाया

नहीं तो मैं भी अंतर्मन से इक भगवान जैसा हूँ...........मैं ही खुद को भजता हूँ..पर जानता ही नहीं की दो है ही नहीं 

 

कभी इक जाति के कारण, कभी बस धर्म के कारण

बँटा हर बार तब समझा कि हिन्दुस्तान जैसा हूँ.................बहुत प्रभावी शेर 

 

उजाले और कुछ ताज़ी हवा से घर संवारा है 

सखी तू एक खिड़की है, मैं रोशनदान जैसा हूँ...सुन्दर 

 

निराशा में नया पथ खोज लेता हूँ सफलता का

किसी मासूम बच्चे की नवल मुस्कान जैसा हूँ............बहुत खूबसूरत 

 

कभी जो आसरा अपना, कभी भगवन बताते थे

वही बच्चें जताते हैं,  किसी व्यवधान जैसा हूँ...........उफ़! आज की ये कड़वी सच्चाई 

 

नयन-जल-सा गिरा हूँ आज थोड़ा आचमन कर लो

मैं समुचित अर्ध्य पावन प्रेम के उन्वान जैसा हूँ.................पूर्ण समर्पण 

 

ये दुनिया राजधानी के किसी सरकारी दफ्तर-सी

जहाँ मैं सिर्फ हिंदी के किसी फरमान जैसा हूँ....................उफ़! ऐसी हालत ..इस कदर नजरअंदाज किया जाना :((

 

मेरी गज़लें पढ़ो इक बार फिर आलोचना करना

ग़ज़ल की शिष्ट दुनिया के नए प्रतिमान जैसा हूँ..............बहुत अच्छा 

इस शानदार ग़ज़ल पर दिली मुबारकबाद पेश है 

स्वीकार करें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 30, 2015 at 10:01pm
आदरणीया तनूजा जी हार्दिक आभार
Comment by Tanuja Upreti on September 29, 2015 at 11:05am

कभी इक जाति के कारण, कभी बस धर्म के कारण

बँटा हर बार तब समझा कि हिन्दुस्तान जैसा हूँ

बेहतरीन पंक्तियों के लिए बधाई स्वीकारें मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 29, 2015 at 5:54am
आदरणीय राहुल भाई जी हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 29, 2015 at 5:54am
आदरणीय समर कबीर जी, आप जैसे उस्ताद से ग़ज़ल पर अनुमोदन मिलना मेरे लिए बहुत मायने रखता है। आपका हार्दिक आभार। नमन।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 29, 2015 at 5:52am
आ. श्याम नरेन् जी हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 29, 2015 at 5:51am
आ. मदन मोहन जी, हार्दिक आभार
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 28, 2015 at 11:35pm
अच्छी गजल हुई आदरणीय । आप जैसे गुनीजनों की वार्तालाप पढना भी मेरे लिए सौभाग्य की बात है। इस चर्चा से बहुत कुछ सीखा हूँ ।
सादर
प्रणाम ।
Comment by Samar kabeer on September 28, 2015 at 11:32pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,आली जनाब डॉ गोपाल नारायन जी की बात भी अपनी जगह सही है,जनाब धर्मेन्द्र जी का मशविरा भी अपनी जगह सही है,जनाब रवि शुक्ल जी ने भी अपनी बात कही है ।
मैं तो आपकी ग़ज़ल के सभी अशआर से प्रभावित हुवा हूँ,इस ग़ज़ल में आपका लहजा साफ़ झलक रहा है ,हिन्दी और उर्दू के मिले जुले शब्दों से ग़ज़ल का जो रूप सामने आया है वो बहुत आकर्षित करता है,आगे भी आपसे अच्छी ग़ज़लों की उम्मीदें वाबस्ता करता हूँ ।

"अल्लाह करे ज़ोर-ए-क़लम और ज़्यादा"

इस अच्छी ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
3 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
3 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
4 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
4 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
10 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service