For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राजधानी में ब्लैक होल (कविता)

देशों की चमचमाती हुई राजधानियाँ

हर आकाशगंगा के केन्द्र में

बैठा हुआ एक ब्लैक होल

 

किसी गाँव के सूरज से करोड़ों गुना बड़ा

अपने आसपास मौजूद तारों को

अपने इशारों पर नचाता हुआ

 

उसके पास खुद का कोई प्रकाश नहीं है

फिर भी वो चमचमा रहा है लगातार

उनके प्रकाश से

जो शिकार हो रहे हैं

उसकी कभी न खत्म होने वाली भूख का

 

ऊष्मागतिकी का तीसरा नियम मुझे सबसे ज़्यादा कष्ट देता है

जिसके अनुसार किसी बंद व्यवस्था की सम्पूर्ण अराजकता

हमेशा बढ़ती है

 

ब्लैक होल

दुनिया की सबसे अराजक व्यवस्था है

फिर भी ये बाहर से देखने पर

ब्रह्मांड की सबसे शालीन व्यवस्था लगती है

क्योंकि इसे अपना बाहरी तापमान नियंत्रित रखना आता है

 

ये सूचनाएँ नष्ट तो नहीं कर सकता

लेकिन सूचना के अधिकार से प्राप्त सूचनाओं से

इसके भीतर की कोई भी जानकारी

बाहर नहीं आ सकती

 

लेकिन मैं निराश नहीं हूँ

मुझे पूरा भरोसा है कि एक न एक दिन

हम दिक्काल में सुरंगें बनाकर

बाहर ले ही आएँगें

इसके भीतर भरी जानकारियाँ

भले ही ऐसा होने पर

व्यवस्था में आम आदमी का भरोसा जड़ से उखड़ जाय

 

अँधेरे में किया गया विश्वास भी

आख़िर अंधविश्वास ही होता है

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 6, 2015 at 8:28pm

आदरणीय सौरभ जी, इस रचना पर आने और अपने विचार रखने के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। आपकी बात बिल्कुल सही है ये पंक्तियाँ सैद्धांतिक रूप से ग़लत हैं।

उसके पास खुद का कोई प्रकाश नहीं है

फिर भी वो चमचमा रहा है लगातार

उनके प्रकाश से

जो शिकार हो रहे हैं

उसकी कभी न खत्म होने वाली भूख का 

मैं इनमें बदलाव करूँगा।

दर’असल ब्लैक होल के चारों तरफ एक प्रभामंडल होता है जो ग्रेविटेशनल लेंसिग के प्रभाव के कारण बनता है। मैं लिखना कुछ और चाहता था और लिख कुछ और गया। त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 3:37pm

वैज्ञानिक शब्दावलियों के प्रयोग से रचना-कौतुक करना आपका प्रिय चसका रहा है, आदरणीय धर्मेन्द्रजी. इस प्रस्तुति में भी आपने अपने प्रिय विषय ’व्यवस्था-परिवर्तन’ को शाब्दिक किया है. 

लेकिन मैं निराश नहीं हूँ

मुझे पूरा भरोसा है कि एक न एक दिन

हम दिक्काल में सुरंगें बनाकर

बाहर ले ही आएँगें

ऊष्मा-गतिकी (Thermodynamics) के तीसरे सूत्र का तो कमाल का उपयोग हुआ है .. :-))

ऊष्मागतिकी का तीसरा नियम मुझे सबसे ज़्यादा कष्ट देता है

जिसके अनुसार किसी बंद व्यवस्था की सम्पूर्ण अराजकता

हमेशा बढ़ती है

और, ये पंक्तियाँ भी कितनी सही हैं, और कितनी प्रासंगिक भी ! --

अँधेरे में किया गया विश्वास भी

आख़िर अंधविश्वास ही होता है

उपर्युक्त पंक्तियों के सापेक्ष यह भी सत्य है कि कुछ समूह विशेष हैं, जो ’ब्राह्मणवाद’ के परोकार हैं. समाज में विशिष्ट ’ब्राह्मणवादी-प्रवृति’ के नेताओं के प्रभावी होने का षडयंत्रकारी कारण हैं. 

लेकिन कृष्ण-विवर (ब्लैक होल) को लेकर निम्नलिखित पंक्तियाँ सैद्धांतिक रूप से गलत हैं. या, पुनः देख लिये जाने योग्य हैं - 

उसके पास खुद का कोई प्रकाश नहीं है

फिर भी वो चमचमा रहा है लगातार

उनके प्रकाश से

जो शिकार हो रहे हैं

उसकी कभी न खत्म होने वाली भूख का 

रेखांकित पंक्ति तो किसी उपग्रह केलिए उचित संभव है, आदरणीय ! कृष्ण-विवर तो अव्वल प्रतीत ही नहीं होता. क्यों कि इसकी ’गुरुता’ इतनी अधिक (अत्युच्च) होती है कि यह प्रकाश की कोई तरंग तक परावर्तित नहीं करता. तथाकथित रूप से ’सोख’ लेता है. यही कारण है कि यह दृष्यमान ही नहीं होता.

या, आप कुछ विशेष कहना चाह रहे हैं ?

आपकी इस कविता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ..

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 3, 2015 at 11:16pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 3, 2015 at 11:15pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय श्याम नारायण जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 3, 2015 at 11:15pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीया प्रतिभा जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 6:18pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, बहुत ही शानदार प्रस्तुति हुई है. इस सशक्त रचना पर हार्दिक बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on September 3, 2015 at 10:44am
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
Comment by pratibha pande on September 3, 2015 at 10:28am
ब्लैक होल का प्रतीक लेकर ये जो आपने व्यवस्था पर चोट करी है ,ये आपकी रचनाधर्मिता की उंचाइयां बयाँ करती है ,और ये third law of thermodynemics कवितामय होकर क्या ही सरल लग रहा है भई वाह ,बधाई आपको धर्मेन्द्र जी इस उत्कृष्ट रचना के लिए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service