For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक गजल - सुलभ अग्निहोत्री

बहर - 212 212 212 212
काफिया - अनी, रदीफ - डाल दी

धुंध यादों पे भरसक घनी डाल दी
बन्द कमरे में वो अलगनी डाल दी 

चिथड़ा-चिथड़ा चटाई बिछी देख कर
उसने खा के तरस चांदनी डाल दी

नाम अनचाहे पर्याय भय का बना
हादसों ने अजब रोशनी डाल दी

उम्र के मशवरे चल पड़े स्वप्न भी
ला के आंखों में हीरक कनी डाल दी

वक्त का जायका था कसैला बड़ा
जिक्र भर ने तेरे चाशनी डाल दी

श्याम का नाम तूने लिया क्या सखी
पाँव में प्यार की पैंजनी डाल दी

विधु ने अनुराग से चाँदनी की बुनी
सिर पे तारों जड़ी ओढ़नी डाल दी

मौलिक व अप्रकाशित
-------- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 596

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sulabh Agnihotri on August 12, 2015 at 12:53pm

बहुत-बहुत आभार Dr Ashutosh Mishra जी !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 11, 2015 at 5:41pm

वक्त का जायका था कसैला बड़ा
जिक्र भर ने तेरे चाशनी डाल दी

चिथड़ा-चिथड़ा चटाई बिछी देख कर
उसने खा के तरस चांदनी डाल दी......आदरणीय इस बेहतरीन ग़ज़ल के इन दो शेरो   के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें स्वीकार करें सादर     

Comment by Sulabh Agnihotri on August 11, 2015 at 10:39am

बहुत-बहुत आभार  आदरणीय गिरिराज भंडारी जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 11, 2015 at 10:38am

बहुत-बहुत आभार  Ravi Shukla जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 11, 2015 at 10:37am

बहुत-बहुत आभार मिथिलेश वामनकर जी ! आपकी इस विस्तृत तारीफ से मेरा प्रयास सार्थक हो गया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2015 at 10:19am

क्या  बात है , सुलभ भाई , बहुत सुन्दर गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Ravi Shukla on August 10, 2015 at 1:06pm

आरणीय सुलभ जी सुंदर ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल कीजिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 12:32pm

वाह वाह आदरणीय सुलभ जी, क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने.... बहुत ही शानदार.... दिल लूट लिया .... एक तो इतनी सुरीली बह्र और उसपर ये कहन.... शेर दर शेर दाद हाज़िर है -

धुंध यादों पे भरसक घनी डाल दी
बन्द कमरे में वो अलगनी डाल दी ............ वाह बेहतरीन मतला... घनी/अलगनी .... बहुत सुन्दर प्रयोग...  आपका सचेत रचनाकार मुग्ध कर रहा है.

चिथड़ा-चिथड़ा चटाई बिछी देख कर
उसने खा के तरस चांदनी डाल दी.......... वाह वाह 

नाम अनचाहे पर्याय भय का बना
हादसों ने अजब रोशनी डाल दी.............. बढ़िया शेर 

उम्र के मशवरे चल पड़े स्वप्न भी
ला के आंखों में हीरक कनी डाल दी.......... सुन्दर 

वक्त का जायका था कसैला बड़ा
जिक्र भर ने तेरे चाशनी डाल दी................. वाह वाह क्या नजाकत है.... इस शेर की चाशनी खूब हुई है.

श्याम का नाम तूने लिया क्या सखी
पाँव में प्यार की पैंजनी डाल दी.................. शानदार शेर .... हासिल-ए-ग़ज़ल 

विधु ने अनुराग से चाँदनी की बुनी
सिर पे तारों जड़ी ओढ़नी डाल दी..... बढ़िया 

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service