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स्वतन्त्र नदी ........इंतज़ार

बरसाती नदी सी क्यूँ हो तुम ?
किसी और की मनोदशा
निर्धारित करती है तुम्हारा बहाव
किसी की मेहेरबानी से चल पड़ती हो
तो कभी सूख जाती हो
कभी सोचा है
मेरा हाल उस मछली की तरहाँ होता है
जो बचे-खुचे कीचड़ में
तड़पती है सिर्फ़ भीगने के लिये
जिंदा रहने के लिये
और जब सैलाब आता है
तो बहुत दूर बह जाती है बेकाबू
तुम कब एक प्रवाह में स्वतन्त्र बहोगी
नदी हो... पहाड़ों से टक्कर ले जीत चुकी हो
अब कोई कैसे स्वार्थ के बांध बना
रोक सकता है तुम्हारा प्रवाह
हे प्रिये ....तोड़ कर सब बंधन
बह निकलो एक स्वतन्त्र
कल-कल करती नदी सी !!

************************************************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 11:55pm

टंकण त्रुटियाँ ठीक कर लें, आदरणीय
यथा,
किसी और की मनोदशा
निर्धारित करता है तुम्हारा बहाव

इसी तरह तरहाँ  को तरह कर लेना उचित प्रतीत होता है.

बाकी, कविता की भावदशा आश्वस्तिकारी है.  शुभ-शुभ

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 3:36pm

आदरणीया savitamishra जी हार्दिक आभार ...सादर 

Comment by savitamishra on July 14, 2015 at 2:46pm

बहुत खूब

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 9:23am

आज कल थोड़ा कम आना हो पा रहा है क्षमा चाहता हूँ ....आप का होंसला अफज़ाई के लिये शुक्रिया ....एवं आभार 

आदरणीय  vijay nikore जी 

आदरणीया Pari M Shlok जी 

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी 

एवं आदरणीय shree suneel जी 

आप के प्रोत्साहन से साहस बना रहता है ....सादर 

Comment by shree suneel on July 12, 2015 at 9:40am
व्वाहह!... व्वाहह!!..बहुत सुन्दर कविता दी है आपने आदरणीय. पहली पंक्ति ने हीं असर किया. 'स्त्री को उसके स्वतंत्र अस्तित्व का बोध कराती बहुत हीं भावपूर्ण कविता हुई. हार्दिक बधाई आपको.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2015 at 9:29am

bhavpoorn , sundar .

Comment by Pari M Shlok on July 9, 2015 at 3:19pm
अद्भुत संवेदना से भरी अभिव्यक्ति......... लाज़वाब
Comment by vijay nikore on July 8, 2015 at 9:42am

   रचना के भाव में बहता ही गया। सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 8, 2015 at 9:34am

आदरणीय vinaya kumar singh जी आप का धन्यवाद .....सादर 

Comment by विनय कुमार on July 7, 2015 at 6:11pm

वाह , बहुत उम्दा कविता | एक नारी के लिए लिखी गयी पंक्तियाँ अपना प्रभाव छोड़ने में पूरी तरह सफल हैं | बधाई इस रचना के लिए आदरणीय..

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