संशोधित दोहे :
कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान
विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान
पैसा काम न आयेगा, जब आएगा काल
रह जाएगा सब यहीं , काहे करे मलाल
काया माया का भला , काहे करे गुमान
नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान
ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़
चुका न पाया दूध का , जीवन में वो क़र्ज़
मानव दानव बन गया, किया खूब संहार
पाप कर्म से कर लिया, पापी ने शृंगार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
भावपूर्ण दोहें | शिल्प पर आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी और आदरणीय सौरभ जी ने जो सीख दी है वह हम सबके लिए अमूल्य है | सादर
इस आत्मीयता के लिए सादर आभार, आदरणीय
आदरणीय सौरभ जी , प्रस्तुत दोहों पर आपकी आत्मीय स्वीकृति ने मुझे आगे बढ़ने की ऊर्जा दी है। प्रस्तुति पर आपकी स्वीकृति से मुझे बहुत ही आत्म संतुष्टि हुई है। मेरा प्रयास आपके आशीर्वचनों के काबिल हुआ, आपका हार्दिक आभार। आदरणीय मैंने न केवल आदरणीय गोपाल जी द्वारा दर्शाये गए गठन को समझा बल्कि आपके लेख को भी अच्छी तरह समझा है। इससे पूर्व मेरे लिए दोहा केवल १३ और ११ मात्राओं से सुसज्जित चार पदों का मात्रिक छंद था लेकिन जब आपके लेख की गहनता को समझा तो ज्ञात हुआ कि दोहा गठन के नियम कुछ और ही हैं। बस फिर उनको आधार मान अपने दोहों का पुनः दोहन कर सृजित किया। विषम/सम के त्रिकल और चोकल के गठन के नियम से अवगत हुआ। भविष्य में कोशिश करूंगा की आप को कम से कम इस विधा में निराशा न हो। आपका हार्दिक आभार। कृपया अपना मार्दर्शन और और स्नेह बनाये रखें।
आदरणीय केवल प्रसाद जी दोहों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। आपने दोहों पर अपनी मधुर और ज्ञानवर्धक प्रतिक्रिया दी उसके लिए आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी छन्द प्रस्तुति मुग्ध कर रही है. आपके दोहों का क्या कथ्य है या इनके संप्रेष्य विन्दु क्या हैं, इस पर तो चर्चा होती रहेगी. पहली बधाई और सादर शुभकामनाएँ इसी बात पर कि आपकी मात्रिक छन्दों की रचना पटल पर प्रस्तुत हो रही है. बहुत खूब आदरणीय !
लेकिन इसके आगे आप यह अवश्य बतायें कि क्या आपने आदरणीय गोपालनारायन जी की टिप्पणी के आशय को समझ लिया है ? कि उन्होंने क्या कहना चाहा है ? उन्होंने मात्रा संयोजन को लेकर जो कुछ कहा है क्या उसका अनुकरण कर पायेंगे ? यदि हाँ, तो आपकी प्रस्तुतियों की मुझे आत्मीयता से प्रतीक्षा रहेगी.
भाई केवल प्रसादजी,
आपने पैसा काम न आयेगा, जब आएगा काल को सुधार कर काम न पैसा आयेगा, पर आयेगा काल किया है.
भाई, आप दोहे के विषम चरण के अन्त को बताना चाहेंगे कि किन-किन विन्यासों में यह हो सकता है ?
क्या आपके सुधार के बाद विषम चरणान्त सही हो गया है ?
शुभेच्छाएँ.
आ0 सरना भाई जी, सुंदर प्रस्तुति.
कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान ...........कर्म बिना मेवा नहीं, बिना मान नहिं शान .
विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान...........विधवा सी लगती सदा, बिना सुरों की तान.
पैसा काम न आयेगा, जब आएगा काल ...........काम न पैसा आयेगा, पर आयेगा काल.
रह जाएगा सब यहीं , काहे करे मलाल......बहुत सुंदर
काया माया का भला , काहे करे गुमान ..........बहुत सुंदर...वाह
नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान..................नश्वर इस संसार में, क्षण भर का अभिमान.
ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़
चुका न पाया दूध का , जीवन में वो क़र्ज़........अतीव सुंदर
मानव दानव बन गया, किया खूब संहार
पाप कर्म से कर लिया, पापी ने शृंगार............अतीव सुंदर
सभी दोहे आतीव सुंदर भाव भरे दोहे मन को छू गये. हार्दिक बधाई स्वीकारे. गोपाल भाई जी से मैं भी सह्मत हूँ. सादर
आदरणीय डॉ गोपाल भाई साहिब दोहों पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया ने दोहा ज्ञान के प्रति मेरी जिज्ञासा को प्रोत्साहित किया। आपका इस हेतु जितना भी आभार व्यक्त करूँ , कम है। आदरणीय मैंने दोहों को नियमानुसार ढालने का भरसक प्रयत्न किया है। आशा है आप अब मेरे प्रयास से निराश नहीं होंगे। अपने स्नेह और मार्गदर्शन बनाये रखें। आपका हार्दिक आभार। इस प्रत्युत्तर के बाद मैं पुनः इन दोहों को एडिट कर पोस्ट कर रहा हूँ। आपका स्नेह चाहूंगा।
आ० सरना जी
दोहे सुन्दर भावपूर्ण है शिल्प थोडा साधना पडेगा '
बिन ज्ञान नहीं शान , इसका संगठन 2+३+३+३ है जो सही नहीं है , सही सगठन 4+4+३ या ३+३+2+३ है i इसी प्रकार --बिना तलवार म्यान,का संगठन सही नहीं है . ----आगे
ममता का न मान किया, का संगठन 4+३+3+३ हां जबकि सही संगठन 4+4+३+2 या ३+३++2+३ +2 है i इसी प्रकार मिटा रहा न जाने क्यूँ--- भी त्रुटिपूर्ण है. सुधार आपसे अपेक्षित है , सादर .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online