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2122  2122 2122 2  

फाईलातुन  फाईलातुन  फाईलातुन फा  

हम किसी से मिलने उसके घर नहीं जाते

आप भी  है जिद  में मेरे दर नहीं आते

 

बेबसी  महबूब  की किस भाँति  समझाऊँ  

आज भी  उनको   मेरे  चश्मेतर नहीं भाते

 

जिन्दगी  बीती  है उनकी  सूफियाना सी   

मस्त तो है  रहते   साजो पर नहीं गाते

 

इश्क  में हूँ  जांबलब  मेरा  भरोसा क्या

फ़िक्र उनको  कब है  चारागर  नहीं लाते

 

एक साया उसका   बांटी  जिन्दगी  हमने  

अन्यथा जीवन में  कुछ भी कर नहीं पाते

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by Samar kabeer on June 18, 2015 at 3:22pm
आली जनाब डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,मैं क्या कहूँ गुणिजन सब कह ही चुके हैं,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 3:05pm

आदराणीय बड़े भाई , ग़ज़ल अच्छी कही है  , हार्दिक बधाइयाँ । बाक़ी आ. वीनस भाई कह ही चुके हैं ।

Comment by वीनस केसरी on June 18, 2015 at 1:34pm

सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई

इस मिसरे पर पुनः गौर करें ...
आज भी  उनको /  मेरे  चश्मे / तर नहीं भा / ते

 २१    २     २२   /   २१    २२ / २    १२   २ / २ 

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 18, 2015 at 12:47pm
आज भी उनको मेरे चश्मेतर नहीं भाते
आदरणीय एक बार आप मुझे इसका मात्रा विन्यास लिख कर दिजिए सादर।
Comment by Rahul Dangi Panchal on June 18, 2015 at 12:34pm
माफी चाहता हूँ आदरणीय यह ठीक है
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 12:19pm

अ० केवल जी

सादर आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 12:19pm

आ० राहुल दागी जी

आज भी उन्हें मेरे चश्मेतर नहीं भाते"-----इसे सुधार  दिया है पर --------आप भी  है जिद  में मेरे दर नहीं आते---मेरी समझ से बहर में  है कृपया फिर देखें . सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 12:15pm

आ० चौहान जी

बहुत  शुक्रिया

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 12:15pm

आ 0 श्याम नारायण  जी

आभार .

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2015 at 6:53pm

सुन्दर गज़ल हेतु दाद कुबूल फरमाए. आ0 गोपाल भाई जी. सादर

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