For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उमस(सोमेश कुमार)

उमस(सोमेश कुमार )
“ आज तो चलना है ना, “सरोजनी नगर मार्किट ” पल्लवी ने थोड़ा नाराजगी भरे लहजे में कहा
”हाँ-हाँ बाबा,पक्का, कसम से ” आयाम बोला
“कब ?”
“काम निपटा लो, फिर चलते हैं ११-१२ बजे तक”
१०.३० बजे नाश्ता करने के बाद बिस्तर पर उंघते हुए- “पल्लवी , कैंसिल करते हैं याsर, सोने का मन कर रहा है| उमस भी है|सारा बदन –चिपचिप-चिपचिप हो रहा है | “
“हाँs , ना तो ये उमस कम होगी और ना ही तुम्हारे मन की उमस जाएगी |अब भी तो वही है तुम्हारे ख्यालो में- - - - तुम्हें शीतल करती, मैं तो बस उमस हूँ |
“क्या बकवास करती हो ?वो मेरा अतीत है और तुम मेरा वर्तमान |मैं जब-जब उसे भूलने की कोशिश करता हूँ तुम - - - - -शssट”नाराजगी से गर्दन हिलाता है |”
“अगर ऐसा नहीं है तो डिब्बे में क्यों बंद रहते हो ?क्यों बस किताबों-कहानियों तक सिमटे हो ?क्या तुम्हें समझ नहीं आता कि मेरे भी कुछ अरमान है ?तुम तो अपनी कहानी-किताबों से संतुष्टि पा लेते हो पर मेरी इच्छाओं का क्या ?”
“क्या मैं तुम्हें प्यार नहीं करता ?” |
“क्या माँगने पर रुपए दे देना और रात में बिस्तर साँझा करना इसी को तुम प्यार समझते हो ?”
“तो तुम्हें ये सब क्या लगता है ?”
“नौकरी यानि की बेमन से किया जाने वाला काम - - - - -“
“पर मेरे मन में तो कभी ऐसा ख्याल नहीं आया| शायद तुम्हीं - - - - “कहते-कहते रुक जाता है |”
“हाँ,मुझे ऐसा ही लगता है |बनाना-खिलाना और साथ में सो जाना-नथिंग बट अ फुल टाइम सर्वेंट |”

मेरी तो कोई परवाह ही नहीं |मैं तो बस एक नौकरानी हूँ-बनाओ-खिलाओ और साथ में सो जाओ |”

“क्या हनी ! तुम्हारी रेलगाड़ी है कि रूकती ही नहीं !ऐसे तो एक्सीडेंट हो जाएगा |”थोड़ा लाड से कहता है
“हाँ-हाँ,मैं तो हूँ हि एक्सीडेंट !ऐसा है तो छोड़ क्यों नहीं देते मुझे !और जहाँ तुम्हारी गाड़ी सेफ़ चले,वहीं चले जाओ |”
“उफ्फ यार !तुम तो बड़ी जल्दी बुरा मान जानती हो |”
“तो और क्या करूं ?पिछले एक महीने से सरोजनी मार्किट ले जा रहे हो और जब चलने का वक्त आता है तो कोई ना कोई बहाना-कभी गर्मी-कभी बारिश-कभी उमस तो कभी तुम्हारे दोस्त - - -“मुँह फुलाकर दूसरी और देखने लगती है |
“अच्छा चलो,रैडी हो जाओ,उत्तमनगर मार्किट चल लेते हैं |दूर भी नहीं जाना पड़ेगा और तुम्हारी शोपिंग भी हो जाएगी |
“क्या उत्तमनगर !क्यों ?”
“मैं अरविन्द जी के साथ बैठ कर गप्प-शप्प कर लूँगा और तुम उनकी वाइफ के साथ शोपिंग |”
“|मैं तुम्हें झल्ली लगती हूँ |क्यों जाऊ मैं मिस.अरविन्द के साथ ? साफ़-साफ़ बोलों कि मेरे साथ चलना तुम्हें पसंद नहीं |”
ये कहते हुए धम्म से बिस्तर पर गिर जाती है और सुबकने लगती है |
“यार सुनो तो ,मेरा वो मतलब नहीं था |आँखों से ये गंगा-जमुना मत बहाओ |”उसका हाथ पकड़ते हुए कहता है |
“छोड़ दो मुझे !” हाथों को खींचकर मुँह तकिए से ढक लेती है |
“अच्छा चलो,अगर तुम्हारी यही जिद्द है तो सरोजनी मार्किट ही चलते हैं |मैं तो बस कह रहा था इतनी उमस में इतनी दूर |”तकिया हटाकर उसके बालों को सहलाता है |
“अरे ये क्या !उ sमस !बा sढ़ !”उसकी नाक को छूते हुए हँसता है |
“सूssऊँ “नाक खींचती हुई उसकी छाती पर मुक्का मारती है |

फिर कुछ देर बाद मोटर-साईकिल पे बैठते हुए आयाम बोला - “यार कितनी उमस है! बादल भी चले आ रहें हैं.....बारिश हुई तो फँस जाएँगे | ”
पर पल्लवी ने कोई प्रतिक्रिया नही दी |
फिर कुछ दूर जाते ही - “टप-टप,” टिप-टिप,” ‘तड़-तड़ ‘
“अरे आप भीग रहे हो, बीमार पड़ जाओगे, चलो कहीं रुक जाते हैं |“ पल्लवी ने चिंतित होकर कहा |
“मेरी फ़िक्र मत करो |मुझे भीगने की आदत है |एण्ड यू नो –आई लव दि रेन |”
पर शरणार्थीयों से खचाखच भरे बस-स्टाप के पास गाड़ी का ब्रेक लगा देता है |
“गाड़ी क्यों रोकी ?”
“अरी !मेरी छुई-मुई |ज़्यादा भीग गई तो अभी तुम्हारी-‘आक्षी –आक्षी’ |“
तभी आऽक्शि |
दोनों हँसते हुए बस-स्टॉप की शेड की भीड़ में दाखिल हो जाते हैं|
बारिश धीमे होते ही बाईकों का कारवाँ चल पड़ता है और वो भी उसमे शामिल हो जाते हैं | कुछ ही दूर गए थे कि फिर से-‘टिप-टिप-टिप –टिप ,तड़-तड़-तड़-तड़’
“कहता था ना कि बारिश में फँस जायेंगे” अब वो मेट्रो-पुल की शेड के नीचे थे |
फिर बारिश धीमें होते ही बाईक स्टार्ट करते हुए –“ अब फिर से मिली तो वापस घर |”
थोड़ी ही दूर गए थे कि फिर से मुसलाधार बारिश शुरु हो जाती है |आयाम यू टर्न लेता ही है कि पल्लवी चहकते हुए बोलती है- चलो छोड़ो बाज़ार-वाज़ार,कितना रोमेंटिक मौसम है,चलो कहीं और चलते हैं|
“इस वक्त !कहाँ ?”.
“इंडिया-गेट |”
“पागल हो,तुम्हरी तबीयत - - - -,”
“कुछ नहीं होगा-प्लीज़-प्लीज़ |” बच्चों की तरह पीठ पर मुक्का मारती है |
बाईक इंडिया-गेट की तरफ भागने लगती है|

”थोड़ा धीरे चलाओ, जल्दी किस बात की है ,घर थोड़े ही जा रहे है,मन भर भीग तो लें |” पल्लवी ने डांटने के अंदाज़ में कहा
“मुझे ठण्ड लग रही है |”
“झूठ बोले कउआ काटे(गाते हुए )
यूँ क्यों नहीं कहते कि मूड रोमंटिक हो रहा है “ कहते हुए आयाम को पीछें से भींच लेती है |
“अब भी,ठंड लग रही है|बदन मा बड़ी आग है(गुनगुनाते हुए ) “ पूछती है
“सब देख रहे हैं |” कुछ झिझक के साथ बोलता है
“देखने दो, हम पति-पत्नी हैं |”
फिर हाथ उठाकर जोर से गाने लगती है –“ आज मैं ऊपर आसमाँ नीचे.....”
इण्डिया गेट के नजदीक चाय का ठेला देखकर चिल्लाते हुए -“वाव टी !चलो पर्स दो |”
और चाय लेने दौड़ पड़ती है |बारिश बंद हो चुकी होती है पर बादलों का बुंद-बुंद टपकना जारी रहता है |


चाय लेकर,आयाम की तरफ बढ़ाते हुए-“एक गरम चाय की प्याली हो |कोई उसको पिलाने वाली हो |”
तभी ‘डिsप’ एक बुंद आकर उसके कप में गिरती है |
“लो तुम्हारी चाय में तो पानी पड़ गया |” आयाम छेड़ते हुए कहता है |
“पानी नहीं मेरे हनी,अमृत,वो क्या लिखते हो तुम –वो पक्षी वो विशेष बादल - - -“दिमाग पर जोर डालती है
“मे आई हेल्प यू |”चाय का घूंट भरते और मुस्कुराते हुए पूछता है |
“नो-नो ,आई एम ग्एटिंग,होल्ड दिस |”अपना कप भी उसे पकड़ा देती है |
तभी फिर ‘डsप’
“हाँss,चातक और स्वाति नक्षत्र की बुंद |” कहकर आयाम से अपना कप लेकर सुड़कने लगती है और आयाम उसे देखकर मुस्कुराने |

फिर चाय पीते हुए –“पता है आपको, मैं पहले कभी इतना नहीं भीगी ....”
“और इस तरह मैं भी नहीं”- उसकी आँखों में आँखे डालकर कहता है |वो आँखे झुका लेती है |
उमस कुछ कम हो चली थी पर बादलों की पकड़म-पकड़ाई जारी थी |
फिर घर की तरफ लौटते हुए, सड़क पर जगह-जगह खड़े पानी में जब आयाम बाईक धीमी करता है तो कुछ बावलेपन से बोलती है –“ क्या करते हो, कपड़े तो गीले हो ही गए हैं |अब कुछ छींट ही तो पड़ेगी |समझ लेंगे होली खेल ली |वैसे भी होली के दिन तो आपको दोस्तों से ही....”
घर से कुछ ही मीटर दूर रह गए थे की- घर्र-घर्र, घुर्र-घुर्र घूऽ और बाईक बंद |
“शायद पानी चला गया है इंजन में, तुम घर चलों ,मैं इसे मैकेनिक से स्टार्ट कराके आता हूँ | वैसे भी फिर से बारिश होने लगी है |”
“क्यों जाsऊ, बेशक से इक्कीसिवी सदी की हूँ पर प्यार सोलहवी सदी का ही है मेरा |चलो मैं भी मदद करती हूँ |” और वो पीछे से गाड़ी धकेलने लगती है |
आयाम गुनगुनाने लगता है-“तेरा साथ है कितना प्यारा-तुझ पे अपना जीवन वारा |तेरे मिलन की लगन में- - -“
पीछे से पल्लवी से ऊँची आवाज़ में साथ देते हुए –“हमे आना पड़ेगा दुनिया में दोबारा |”
दोनों खिलखिला के हँस पड़ते हैं |
जोर से हवा चलने लगती है ,बादल उड़ने लगते हैं और उमस - - - |

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 1065

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2015 at 9:57pm

लगे रहो मेरे मुन्ना भाई.

Comment by somesh kumar on June 15, 2015 at 9:46pm
शुक्रिया rajkumarahuja bhai ji
Comment by rajkumarahuja on June 15, 2015 at 8:20pm

कोई लौटा दे मेरे बीते हुऐ दिन.....! वह सोमेश जी सुंदर , पुराने दिन याद आ गए , वो झमा-झम बारिश और पचमढ़ी की सूनी सड़कें ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service