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मैं  यहां  पर  रहूँ  या  वहां  पर  रहूँ

ऐ  खुदा  तू  बता  मैं  कहां  पर रहूँ ?

 

एक  साया   मुझे  आपका   जो  मिले

फ़िक्र क्या फिर कहाँ किस मकां पर रहूँ I

 

जिन्दगी  आज  तो  है  तिजारत हुयी   

फर्क ये है कि  मैं किस  दुकां  पर रहूँ I

 

हो  रहम  मालिकों  की मयस्सर मुझे 

पंचवक्ता  तेरी   मैं   अजां  पर  रहूँ I

 

याद   तेरी  करूं  जिन्दगी  यूँ  कटे

नाम  लेता   रहूँ  मैं  जहां  पर  रहूँ I

(मौलिक व् अप्रकाशित )

 

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Comment

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Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 2, 2015 at 11:03am

क्या खूब कहा है ...

एक  साया   मुझे  आपका   जो  मिले

फ़िक्र क्या फिर कहाँ किस मकां पर रहूँ I.........बधाई ..सादर 

Comment by narendrasinh chauhan on June 1, 2015 at 3:39pm

खूब सुन्दर ग़ज़ल / खूब खूब बधाई सर

Comment by Shyam Narain Verma on June 1, 2015 at 3:23pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!
Comment by विनय कुमार on June 1, 2015 at 3:05pm

याद तेरी करूं जिन्दगी यूँ कटे
नाम लेता रहूँ मैं जहां पर रहूँ !
बहुत अच्छी रचना आदरणीय..

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