For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ; यकायक चराग़ों को क्या हो गया है

122 122 122 122

यकायक चराग़ों को क्या हो गया है
बुझे थे, जले फिर, ये किसकी दुआ है.

चलो और दिन तो है बाकी, रूकें क्यों
शजर पे अभी नूर देखो झुका है.

इसी आरज़ू में कटी ज़िन्दगी ये
पता तो चले क्या हमारा हुआ है.

अभी छू नहीं सर्द हांथों से ऐ शब
अभी तो मुझे उसने मन से छुअा है.

मुहब्बत किसे रास आई है इसमें
अमीरी, ग़रीबी, ज़माना, जुआ है.

- श्री सुनील

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 901

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on May 15, 2015 at 10:40pm
आदरणीय हरि प्रकाश जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई इसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया..
Comment by shree suneel on May 15, 2015 at 10:38pm
शुक्रिया.. आदरणीय केवल प्रसाद जी
Comment by shree suneel on May 15, 2015 at 10:35pm
शुक्रिया.. आदरणीय मदन मोहन जी.
Comment by Hari Prakash Dubey on May 15, 2015 at 9:18pm

शानदार  रचना आदरणीय  shree suneel  जी ,

यकायक चराग़ों को क्या हो गया है
बुझे थे, जले फिर, ये किसकी दुआ है...बहुत बढ़िया 

मुहब्बत किसे रास आई है इसमें
अमीरी, ग़रीबी, ज़माना, जुआ है.....बहुत खूब ! हार्दिक बधाई आपको  

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2015 at 8:13pm

आ0 सुनील भाई जी,  बेहतरीन गज़ल के लिये दाद कुबूल करे. सादर

Comment by Madan Mohan saxena on May 15, 2015 at 5:35pm

"यकायक चराग़ों को क्या हो गया है
बुझे थे ,जले फिर ,ये किसकी दुआ है "
अच्छी ग़ज़ल

Comment by shree suneel on May 15, 2015 at 4:48pm
आदरणीय समर कबीर सर, मार्गदर्शन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.
फिर तो मतला बदलना हीं होगा और आपका सुझाव भी मुझे कुबूल है. जल्द हीं सही करता हूँ. पुनः धन्यवाद आदरणीय.
Comment by shree suneel on May 15, 2015 at 4:32pm
शुक्रिया.. शुक्रिया.. आदरणीय अयूब खान साहब.
Comment by Samar kabeer on May 15, 2015 at 2:29pm
जनाब श्री सुनील जी आदाब ,"शुआ" का क़ाफ़िया नहीं लिया जा सकता ,जैसा कि आप ख़ूब जानते हैं कि सही शब्द "शुआअ" है ,आपके मतले के लिये एक सुझाव है अगर आप क़ुबूल करें तो :-

"यकायक चराग़ों को क्या हो गया है
बुझे थे ,जले फिर ,ये किसकी दुआ है "
Comment by Ayub Khan "BismiL" on May 15, 2015 at 2:06pm

khooooob bahut umdaa janaab behtreen gazal hui hai 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service