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शक्ति छंद (नेपाल भूकंप )

  

अभी फूल पूरे खिले भी न थे

नई जिंदगी से मिले भी न थे

चली बेरहम वक़्त की आरियाँ

कटे शीश धड़ से मिटी क्यारियाँ

 

कहर बन फटी थरथराती जमी

जहाँ सांस आई वहीँ पे थमी

दिखाई अजब काल ने क्रूरता

फिरा क्रुद्ध यमराज यूँ घूरता

 

निवाले कई काल के हैं बने

दबे हर जगह जिस्म खूँ से सने

बचा जो यहाँ ढूँढता आसरा

सहारा बना एक का दूसरा

 

बचे काल से एक भाई बहन

सिसकते हुए घाव खाए गहन

हुए मूल से देख  महरूम ये

लिपटते हुए आज  मासूम ये

 

न माँ का पता ना पिता का पता

नहीं सोच पाए हुई क्या खता

कहर कुदरती बाढ़ क्या जलजला

कहाँ उम्र ये सोचने की भला

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:14pm

जीतेन्द्र भैया,आपको छंद पसंद आये मेरा लिखना सफल हुआ दिल से आभारी हूँ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:13pm

आ० समर कबीर भाई जी,आपकी इस उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से शुक्रिया मेरा लिखना सार्थक हुआ सादर|   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:11pm

आ० लक्ष्मण रामानुज जी,छंद पर आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार|   

Comment by Hari Prakash Dubey on May 16, 2015 at 10:11am

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,शक्ति छंद पर एक  जबरदस्त रचना है यह , बहुत बधाई  आपको  ,और आभार  इससे  शक्ति छंद  सीखने को भी  मिलेगा ! सादर 

Comment by Tanuja Upreti on May 15, 2015 at 9:59am

बहुत मर्मस्पर्शी रचना मै'म 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 14, 2015 at 3:18pm

नेपाल भूकंप का शक्ति छंद में जीवंत चित्रण हुआ है आ० हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 13, 2015 at 9:58pm
आदरणीया राजेश दीदी भावुक कर दिया आपने। बहुत अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।
Comment by Nirmal Nadeem on May 13, 2015 at 9:07pm
क्या बात है बहुत खूब बहुत अच्छा वाह वाह वाह
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2015 at 8:23pm

आ0 राजेश'दी जी,  बहुत सुंदर छंद मे करुणा को स्वर मिला, उत्क्रुष्ट भाव के लिये हार्दिक बधाई. सादर

Comment by Shyam Narain Verma on May 13, 2015 at 1:10pm

उम्दा छंद रचना के लिए बधाई आपको |

सादर

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