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“सुनो! कितनी अच्छी हो तुम, कितना प्रेम है तुम्हारे पास मेरे लिए. मेरा शादी-सुदा होना भी तुमने अपनी गहराइयों से स्वीकार लिया है. कुछ कहो न!, ऐसा क्या है मुझमे..?”

“ मुझे, तुमसे सब कुछ मिल रहा है जो किसी से शादी के बाद जो मिलता. और मैं तुमसे अपनी मर्जी तक सम्बन्ध बनाये रख सकती हूँ, क्यूंकि तुम शादी-शुदा होने के कारण, समाज अपने परिवार और क़ानून के डर से मुझसे जबरदस्ती नहीं कर सकते. नहीं तो आजकल के बेचलर...तौबा-तौबा “

   जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 8, 2015 at 9:32am

लघुकथा पर आपकी उपस्थिति सदा मनोबल बढाती है, आदरणीय डा, गोपाल जी. हार्दिक आभार आपका

सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 7, 2015 at 8:45pm

जीतू भाई

मानना पडेगा  आजकल की नारियां बोल्ड हो गयी हैं , अच्छी  कहानी .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 9:12pm

आपने लघुकथा में कुछ शब्दों के ही उपयोग से जान डाल दी , आदरणीय सौरभ जी. आपने रचना को अपना अमूल्य समय देकर मुझे कई बार अपना ऋणी बना चुके है. यह मेरा सौभाग्य ही है और मैं सदा कर्जदार बना रहना चाहूँगा.

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2015 at 2:05pm

"शादी न सही, मगर तुमसे मुझे वो सबकुछ कुछ मिल रहा है, जो किसीको जीवन में चाहिये..  फिर, मैं तुमसे अपनी मर्जी सम्बन्ध बनाये रख सकती हूँ, क्यूंकि तुम शादी-शुदा होने के कारण, समाज अपने परिवार और क़ानून के डर से जबरदस्ती भी नहीं कर सकते. वर्ना आजकल के बेचलर..  क्लम्सी... टोटली मेस.. तौबा-तौबा.. “

कथा पूरी .. देखिये कुछ कोशिश की मैंने

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 12:55pm

लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और सकारात्मक प्रतिक्रिया से बहुत मनोबल मिला,आदरणीय सुरेन्द्र जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 12:53pm

आपकी उत्साह वर्धन करती सराहना एवं विषय को सकारात्मक रूप देती प्रतिक्रिया, लघुकथा को सार्थकता का प्रमाण दे रही है आदरणीया राजेश दीदी. आपके स्नेहिल आशीर्वाद का ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 6, 2015 at 11:30am

एक व्यंग्य ... समाज के संस्कार के गिरते स्तर को व्यक्त करती अच्छी लघु कथा.. हाँ आसानी से लोग ब्लैकमेल भी हो जाएँ डर रहे  मौज बनी रहे जब आँखों का पानी ही सूख जाए तो ऐसा ही होता है भाई
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 6, 2015 at 11:20am

यानी लडकियाँ शादी शुदा मर्दों का फायदा उठा रही हैं ये एक भावनात्मक ब्लेकमेलिंग ,अवसरवादिता मौकापरस्ती कुछ भी कह लीजिये पर संस्कार तो ताक पर रख दिए ऐसे युवक युवतियों ने  क्या कहें ये सब हो भी रहा है आजकल ..इस कटाक्ष पूर्ण लघु कथा के लिए बधाई जितेन्द्र भैया. 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 10:35am

आदरणीय मिथिलेश जी. मैं भी आप ही की तरह छात्र हूँ, आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया सदा मेरा मनोबल बढाती है.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 10:32am

आदरणीय रवि जी. आपके मार्गदर्शन हेतु आपका आभारी हूँ.. आपके सुझाव अनुसार लघुकथा में सनदेश स्पष्ट हो ,ऐसा मैंने संशोधन करने की कोशिश की है. कृपया आप अपना अमूल्य समय देकर मुझे अनुग्रहित कीजियेगा

सादर!

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