For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- बदलने को बदल जाना,मगर तहजीब जिंदा रख।

बदलने को बदल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हवा के साथ ढल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
यहाँ रंगीन होती रोशनी है कौंधने वाली
खुशी के साथ जल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हमारे आम पर यह कूकती कोयल बताती है
नये मौसम मचल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हमारे नौजवानों की नई पीढी, नये रिश्ते
नशे में खुद को छल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
महब्बत के लिये तो लाख पापड बेलने होंगे
महब्बत में उछल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
बदलना भी जमाने का बडा हैरान करता है
बहुत आगे निकल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
भटक कर आदमी इनसानियत को प्यार करता है
कंही खुद को न छल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
...........................सूबे सिंह सुजान.......................
मौलिक तथा अप्रकाशित

Views: 480

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 8:50pm

Dr. Vijai Shanker,   जी आपकी टिप्पणी पाकर मुझे खुशी हुई। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 8:49pm

Samar kabeer,      जी आपने तारीफ की । मैं अभिभूत हूँ। परंतु मुझसे भी अवश्य ही दोष हुआ है । यह दोष पता चलने पर मुझे बहुत हैरत हुई कि मैं कैसे गलती कर गया। गिरिराज जी  ने मुझे याद दिलाया मैं उनका और आपका बहुत बहुत आभारी हूँ।

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 8:46pm

गिरिराज भंडारी

                    जी आपका बहुत बहुत आभार। आपने ठीक याद दिलाया।

मानता हूँ यह तो दोष है। बहुत जल्दबाजी कर गया । इस दोष पर आप सब प्रबुद्धजनों से क्षमा प्रार्थी हूँ।

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 8:43pm
Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 8:43pm

Shyam Narain Verma

  आपका आभार

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 16, 2015 at 4:34pm
अच्छी ग़ज़ल , बधाई , आदरणीय सूबे सिंह सुजान जी , सादर।
Comment by Samar kabeer on April 16, 2015 at 2:55pm
जनाब सूबे सिंह सुजान जी,आदाब,आपकी रचना अच्छा संदेश दे रही है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
मैं जनाब गिरिराज भंडारी जी की बात से सहमत हूँ |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 2:06pm

आदरणीय सूबे सिंह भाई जी , गज़ल बहुत सुन्दर हुई है , बहुत कठिन रदीफ का आपने निर्वाह किया है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

मतले मे काफिया में सिनाद दोष आ गया है  --  बदल जाना .... और घुल जाना ....  समान हिस्से  - ल जाना  के पहले का स्वर मेल भी होना आवश्यक है ,  बदल मे  अल और घुल मे उल आ रहा है , देख लीजियेगा ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 16, 2015 at 12:55pm

आ० सुजान जी

अच्छी गजल हुयी है  . सादर .

Comment by Shyam Narain Verma on April 16, 2015 at 10:52am
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
17 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service