ज़मानॆ का चलन यारॊ यहाँ इक-दम निराला है !!
गिरा जॊ राह मॆं उसकॊ कहॊ किसनॆं सँभाला है !!(१)
चला जॊ राह ईमाँ की उसी पर है उठी उँगली,
सरीखा आँख मॆं चुभता सभी की तॆज भाला है !!(२)
चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ अब चिराग़ॊं कॊ,
कभी सॊचा नहीं उन नॆं अँधॆरा स्याह काला है !!(३)
लिखी किसनॆ यहाँ तहरीर है ख़ूनी लिबासॊं की,
जहाँ दॆखॊ वहीं पॆ बस क़ज़ा का बॊल-बाला है !!(४)
वफ़ा की राह चलनॆं का नतीज़ा खून कॆ आँसू,
मग़र फिर भी वफ़ाऒं कॊ ज़हां मॆं खूब पाला है !!(५)
सियासी इल्म यॆ अपनी समझ मॆं ही नहीं आया,
कभी पूजा हमॆं तुमनॆं कभी दिल सॆ निकाला है !!(६)
ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !! (७)
"राज़ बुन्दॆली
मौलिक एवं अप्रकाशित,,,,,,
Comment
आदरणीय राज भाई , बहुत बढिया गज़ल कही है , सभी अश आर के लिये दिली बधाइयाँ ॥
चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ अब चिराग़ॊं कॊ,
कभी सॊचा नहीं उन नॆं अँधॆरा स्याह काला है
बहुत खूब कहा आपने आदरणीय
आदरणीय राज बुन्देली जी शानदार ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई
सियासी इल्म यॆ अपनी समझ मॆं ही नहीं आया,
कभी पूजा हमॆं तुमनॆं कभी दिल सॆ निकाला है !!
ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !!...वाह... शानदार... बधाई
आ० राज बुन्देली जी
बहुत अच्छी गजल है . आपने जान फूंक दी है . सादर .
ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !! (७)
वाह वाह वाह .... कितनी भी तारीफ़ करूँ रुकती नहीं जुबां ,कितनी हसीं बना दी आपने एहसासों की बस्तियां … आदरणीय बुंदेली जी इस दिलकश और खूबसूरत शे'रों के गुलदस्ते की प्रस्तुति पर हार्दिक हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं।
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