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ग़ज़ल- निलेश 'नूर' रुसवाइयों से रोज़ मुलाक़ात काटिये

गागा लगा लगा लल गागा लगा लगा 

रुसवाइयों से रोज़ मुलाक़ात काटिये
जबतक है जान जिस्म में, दिनरात काटिये.
.
है आप में अना तो अना मुझ में भी है कुछ 
यूँ बात बात पे न मेरी बात काटिये.  
.
ये कामयाबियों के सफ़र के पड़ाव हैं  
अय्यारियाँ भी सीखिए जज़्बात काटिये.
.
अगली फसल कटे तो करें इंतज़ाम कुछ
तब तक टपकती छत में ही बरसात काटिये.
.
ये इल्तिज़ा है आपसे इस मुल्क के लिए  
दिल से ये नफरतों के ख़यालात काटिये.  
.
रौशन ख़याल हो तो अँधेरों की फिक्र क्या  
ख़ुद को चराग़ कीजिए ज़ुल्मात काटिये   

.
नूर 
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 635

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 11:56am

शुक्रिया आ. मिथिलेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 11:56am

शुक्रिया आ. वंदना जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2015 at 11:39am

आ० भाई नीलेश जी . इस समृद्ध ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 2, 2015 at 5:28am

अगली फसल कटे तो करें इंतज़ाम कुछ 
तब तक टपकती छत में ही बरसात काटिये.

बहुत खूब ...बधाई ...सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2015 at 11:57pm

आदरणीय नीलेश जी शानदार ग़ज़ल हुई है ... शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by vandana on April 1, 2015 at 8:17pm

है आप में अना तो अना मुझ में भी है कुछ  
यूँ बात बात पे न मेरी बात काटिये.   

रौशन ख़याल हो तो अँधेरों की फिक्र क्या  
ख़ुद को चराग़ कीजिए ज़ुल्मात काटिये   

वाह आदरणीय बहुत शानदार ग़ज़ल 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 5:12pm

शुक्रिया श्री सुनील जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 5:12pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2015 at 4:48pm

ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल करें आदरणीय नीलेश जी.

Comment by shree suneel on April 1, 2015 at 3:11pm
क्या खूब कहा आपने निलेश जी...
रौशन ख़याल हो तो अँधेरों की फिक्र क्या
ख़ुद को चराग़ कीजिए ज़ुल्मात काटिये

बाकी के अशआर भी शानदार है. बधाईयाँ.

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