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हैरत नहीं अगर कोई नाकाम हो गया- ग़ज़ल

221 2121 1221 212

जो होना था फ़रेब का अंजाम हो गया

इक मुह्तरम जहान में बदनाम हो गया

 

आफ़ाक़ के सफर में नहीं मिलती मंज़िलें

हैरत नहीं अगर कोई नाकाम हो गया

 

जलने लगे चराग सितारे चमक उठे

दीदारे ताबे हुस्न सरे शाम हो गया

 

बेदार शब तमाम जला चाँद अर्श पर

जाहिर जुनूने इश्क़ सरे बाम हो गया

 

तेरी मुहब्बतों से मुनव्वर किया दयार

आलम फ़रोज़ शम्स को आराम हो गया

 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on March 30, 2015 at 6:42am
जो होना था फ़रेब का अंजाम हो गया
इक मुह्तरम जहान में बदनाम हो गया
वाह , बहुत खूब , आनंद आ गया , बधाई , आदरणीय शिज्जु शकूर जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2015 at 9:14pm
आदरणीय शिज्जु भाई जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कुबूल फरमाए।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 29, 2015 at 5:56pm

शिज्जू भाई

कुछ उर्दू के लफ्ज पल्ले नहीं पड़े . गजल आपकी है तो कहने को क्या रह जाता है . सादर .

कृपया ध्यान दे...

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