For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


कहते हैं इल्ज़ाम छुपाकर रक्खा है
मैंने तेरा नाम छुपाकर रक्खा है.
.
झाँक के देखो मेरी इन आँखों में तुम
अनबूझा पैग़ाम छुपाकर रक्खा है.
.
शायद वो हो मुझ से भी ज़्यादा प्यासा
उसकी ख़ातिर जाम छुपाकर रक्खा है.
.
जिसको तुम सब कहते हो ईमाँ वाला,
उसने अपना दाम छुपाकर रक्खा है.
.  
आया है वो आज जुबां पर गुड लेकर
शायद कोई काम छुपाकर रक्खा है.
.
मस्जिद की दीवार किनारे तुलसी ने
अपने मन का राम छुपाकर रक्खा है.  
.
लोग भला समझेंगे इस रिश्ते को क्या
‘नूर’ इसे गुमनाम छुपाकर रक्खा है.
.
नूर 

मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 658

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 2:48pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 2:45pm

मस्जिद की दीवार किनारे तुलसी ने
अपने मन का राम छुपाकर रक्खा है.  ... .  ग़ज़ब !

लोग भला समझेंगे इस रिश्ते को क्या
‘नूर’ इसे गुमनाम छुपाकर रक्खा है. ..........  हाथ से छू न देना..

दाद कुबूल करें, आदरणीय..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2015 at 12:54pm

शुक्रिया आ. जितेन्द्र भाई ..पुन: सक्रीय होने की कोशिश में हूँ 
सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 27, 2015 at 11:25am
मस्जिद की दीवार किनारे तुलसी ने
अपने मन का राम छुपाकर रक्खा है....वाह! क्या कहने. बहुत उम्दा, दिली दाद कुबुलें आदरणीय निलेश जी
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2015 at 9:04am

शुक्रिया आ. सेठी साहब.

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 27, 2015 at 7:06am

वाह ...हर शेर लाजवाब ...बधाई ...सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2015 at 11:47pm

शुक्रिया आ. भंडारी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2015 at 11:46pm

शुक्रिया मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2015 at 11:28pm

मस्जिद की दीवार किनारे तुलसी ने
अपने मन का राम छुपाकर रक्खा है.   ------ लाजवाब !! गज़ल के लिये और इस शे र के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥
 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 26, 2015 at 9:37pm

आदरणीय निलेश जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है.... हार्दिक बधाई.... काम और राम काफिया वाले अशआर कमाल के है.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"बदलते लोग  - लघुकथा -  घासी राम गाँव से दस साल की उम्र में  शहर अपने चाचा के पास…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"श्रवण भये चंगाराम? (लघुकथा): गंगाराम कुछ दिन से चिंतित नज़र आ रहे थे। तोताराम उनके आसपास मंडराता…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
yesterday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service