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कहीं दूर निकल जाएँगे : हरि प्रकाश दुबे

दो विदाई, अब तो कहीं दूर निकल जाएँगे ,

अब तो ये गीत कहीं और जा के गाएँगे !

आदमी कुछ भी नहीं, एक एहसास तो है,

शुन्य जैसा ही सही, एक आकाश तो है !  

टूटा बिखरा हो कहीं, एक विश्वास तो है,

इस हक़ीकत को हम ,अब न भुला पायेंगे !

दो विदाई, अब तो कहीं दूर निकल जाएँगे ,

अब तो ये गीत कहीं और जा के गाएँगे !!  

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by somesh kumar on March 25, 2015 at 11:22am

आदमी कुछ भी नहीं, एक एहसास तो है,

शुन्य जैसा ही सही, एक आकाश तो है !

सटीक एवं सुंदर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 25, 2015 at 10:03am
आदमी कुछ भी नहीं, एक एहसास तो है,
शून्य जैसा ही सही, एक आकाश तो है ! बहुत सुन्दर भाव, आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , बधाई, सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 24, 2015 at 5:34pm

दुखी मन मेरे , सुन मेरा कहना

जहाँ नहीं चैना वहाँ नहीं  रहना

सुन्दर भाव . सादर .

Comment by Shyam Mathpal on March 24, 2015 at 11:27am

आ. हरिप्रकाश दुबे जी,

भावपूर्ण रचना के लिए ढेरों बधाई .khajana hai aapke paas.

कृपया ध्यान दे...

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