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तपे रोज जितना हम और भी निखरते गये (महिला दिवस पर विशेष ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२ २२१ २१२ २१२

हटाये जो  काँटे तो रास्ते सुधरते गये 

दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये

 

कदम दर कदम जिस जिस मोड़ से गुजरते गये  

बने तल्ख़ियों के घर टूटते बिखरते गये

 

खुदा जाने  कैसे किस कांच के बने थे अजब    

 दरकते रहे  पत्थर आईने सँवरते गये   

 

दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा   

सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये  

 

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते गये

 

चुकाई कई कीमत राह  से न लौटे  कदम   

चमकते गए जितना यारों को अखरते गये

खुला आसमां हमको रात दिन बुलाता रहा

सदा होंसले जीते भेद भाव मरते गये

 

चली तंज़  की लातादाद सब हवाएँ  मगर 

नई कोंपलें फूटी पात पात झरते गये 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 10, 2015 at 8:33pm

प्रिय प्रतिभा जी,आपको ग़ज़ल उसके भाव प्रभावित किये ये मेरे लेखन के प्रति आश्वस्ति का कारण बना मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभार आपका सस्नेह शुभकामनायें . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 10, 2015 at 8:31pm

आ० श्याम मथ पाल जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 10, 2015 at 8:30pm

महर्षि त्रिपाठी जी ,आपकी सराहना से मेरा उत्साह दुगुना हुआ लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ 

Comment by Shyam Mathpal on March 9, 2015 at 9:15pm

Aadarniya Rajesh Kumari,

Bahut  hi sundar rachna ke dheron  badhai.

Comment by maharshi tripathi on March 9, 2015 at 6:04pm

दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा   

सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये  

 ........वाह !!शानदार ,,,आ.राजेश कुमारी जी इस हृदयस्पर्शी गजल पर ढेरों बधाइयाँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2015 at 2:20pm

आ० डॉ० गोपाल नारायण जी ,आपकी सराहना से ग़ज़ल मुकम्मल हुई ,तहे दिल से आभार आपका सादर.  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 9, 2015 at 12:29pm

महनीया

 बहुत सुन्दर गजल

खुदा जाने  कैसे किस कांच के बने थे अजब    

 दरकते रहे  पत्थर आईने सँवरते गये

 

चुकाई कई कीमत राह  से न लौटे  कदम   

चमकते गए जितना यारों को अखरते गये

 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2015 at 9:18am

प्रतिभा त्रिपाठी जी का कमेन्ट ,मेल में तो दिख रहा है यहाँ नहीं दिख रहा न जाने क्यूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2015 at 9:16am

आ० डॉ० विजय शंकर जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ ,  

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 8, 2015 at 9:49pm
हटाये जो काँटे तो रास्ते सुधरते गये
दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये
बहुत खूब, बधाई ,आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी , सादर।

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