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तरही ग़ज़ल : तू रात की रानी है (गणेश जी बागी)

          221-1222-221-1222

पत्थर से तेरे दिल को मैं मोम बना दूँ तो 
चिंगारी दबी है जो फिर उसको हवा दूँ तो.

इस शहर में चर्चे हैं तेरे रूप के जादू के
मैं अपनी मुहब्बत का इक तीर चला दूँ तो.

क्या नाज़ से बैठी हो फागुन के महीने में
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.

तुम कहते हो होली में इस बार न बहकूँगा
गुझिया व पुओं में मैं कुछ भंग मिला दूँ तो.

गर जेल मुहब्बत है, आजाद नहीं होना 
ता उम्र सजा दे दो जो नींद उड़ा दूँ तो.

ये बात समझ लेना चाहत है मेरी सच्ची
सपनों में अगर आकर रातों को जगा दूँ तो.

 
तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ 
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो ?
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : प्रीत

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 10:57pm

लघुकथाओं के बाद आपकी ग़ज़ल भी प्रभावित कर रही है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 8:23pm

तुम कहते हो होली में इस बार न बहकूँगा
गुझिया व पुओं में मैं कुछ भंग मिला दूँ तो.

गर जेल मुहब्बत है, आजाद नहीं होना 
ता उम्र सजा दे दो जो नींद उड़ा दूँ तो.

आदरणीय गणेश जी बागी साहब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 1, 2015 at 8:05pm

आदरणीय गणेश जी 

सुन्दर ग़ज़ल कही है... ऐसा मुलायम अंदाज आपकी कलम से कम ही देखा है..पर आपने बहुत खूब निभाया है...

पत्थर से तेरे दिल को मैं मोम बना दूँ तो 
चिंगारी दबी है जो फिर उसको हवा दूँ तो...............बहुत खूबसूरत मतला 

इस शहर में चर्चे हैं तेरे रूप के जादू के
मैं अपनी मुहब्बत का इक तीर चला दूँ तो...........वाह! ये भी बहुत मुलायम अंदाज़..क्या मासूमियत से इजाज़त माँगी है?....हाहाहा 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by somesh kumar on March 1, 2015 at 11:37am

शायद ,मंच पर आपकी पहली गज़ल से रूबरू हूँ |पर जिस प्रकार का आनन्द आपकी लघुकथाएँ देती रही हैं वैसे ही अंदाज़े-बयाँ से लबरेज़ है ये गज़ल 

गर जेल मुहब्बत है, आजाद नहीं होना 
ता उम्र सजा दे दो जो नींद उड़ा दूँ तो.

इस शे'र पर विशेष दाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 1, 2015 at 7:46am
आदरणीय बागी सर बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं।
मतला कमाल हुआ है और गिरह भी बेहतरीन लगाई है
भंग और रात रानी वाले अशआर बहुत उम्दा हुए है। इन दोनों शेर के लिए विशेष बधाई।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2015 at 12:06am

सराहना हेतु आभार आदरणीय निर्मल नदीम जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2015 at 12:05am

उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु आपका आभार आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2015 at 12:04am

सराहना युक्त प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीय कृष्णा मिश्रा जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2015 at 12:03am

सराहना हेतु आभार प्रिय महर्षि जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2015 at 12:02am

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, ग़ज़ल पर आपका आगमन और उत्साहवर्धन दोनों मुग्धकारी है, बहुत बहुत आभार आपका.

कृपया ध्यान दे...

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