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प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं.....

प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं.....

प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं
प्रेम धरा है प्रेम गगन है
प्रेम मिलन है प्रेम विरह है
श्वास श्वास का प्रेम बंधन है
प्रेम ईश है प्रेम है पूजा
स्मृति घाट का प्रेम मधुबन है
पावन गंगा सा प्रेम समेटे
लिप्त बूंदों में प्रेम नयन है
मौन अधरों में गुन गुन करता
प्रेम में डूबा प्रेम कम्पन है
आत्मसात का भाव समेटे
प्रेम हकीकत प्रेम स्वप्न है
प्रेम अलौकिक अपरिभाषित
हृदय नयन का प्रेम अंजन है
प्रेम तृप्ति है प्रेम प्यास है
मन के बन में प्रेम यौवन है
प्रेम आदि है प्रेम अंत है
इस सृष्टि का प्रेम सृजन है
प्रेम में डूबा हर कण कण है
प्रेम पुष्प है प्रेम चुभन है
प्रेम समर्पण का तपोवन है
प्रेम दीप है प्रेम है मन्दिर
प्रभु चरणों का प्रेम वन्दन है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 6:50pm

आदरणीय गोपाल नरायन श्रीवास्तव  जी रचना पर आपकी  आत्मीय प्रशंसा  का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 6:48pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया  जी रचना पर आपकी  स्नेहिल प्रशंसा  का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 6:47pm

आदरणीय ख़ुर्शीद खैरादि  जी रचना पर आपके स्नेहासक्त शब्दों का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 6:45pm

आदरणीय महृषि त्रिपाठी  जी रचना पर आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 6:43pm

आदरणीय Pari M Shlok  जी रचना पर आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। आपने जिस त्रुटि की ओर इंगित किया है उस टंकण त्रुटि को मैंने सुधार लिया है।  इस ओर ध्यान दिलाने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 6:41pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी रचना पर आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। आपके सुझाव का तहे दिल से शुक्रिया किन्तु आदरणीय इसे मैंने स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करनी का प्रयास किया है। मात्रा गणना वाली अभिव्यक्ति फिर कभी   … पुनः आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 6:36pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर  जी रचना पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on February 25, 2015 at 6:35pm

आदरणीय हरी प्रकाश दूबे जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 25, 2015 at 12:11pm

आ० सरना जी

प्रेम के अनेक रूप दर्शाती इस कविता के लिए बधाई  i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 25, 2015 at 11:18am

प्रेम को सर्वोच्च आयाम देती बहुत सुंदर रचना आदरणीय सरना जी. बहुत बहुत बधाई

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