For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैसे होते हैं ये रिश्ते
कभी दूर, कभी पास
कभी अपने, कभी पराये
कभी सच्चे, कभी झूठे
कभी नादाँ, कभी ग़मगीन
कभी उम्रदराज़, कभी कमसिन
कभी हठीले, कभी गर्वीले
तो कभी कभी सिफारशी भी होते हैं ये रिश्ते
कभी कभी गुमनाम भी होते हैं रिश्ते
कभी कभी बदनाम भी हो जाते हैं रिश्ते
कभी एक दुसरे को कसूरवार भी ठहराते हैं रिश्ते
कभी कभी निभ जाते और कभी कभी निभाने भी पड़ते हैं रिश्ते
कभी अपनी खातिर और कभी दूसरों के लिए वक़्त मांगते हैं रिश्ते
कभी खुद में सिमट जाते और कभी रुस्वा भी हो जाते हैं रिश्ते
क्या इंसा इन रिश्तों से बच पाया है, बच सकता है
जब तक है सांस, निभाते ही तो हैं रिश्ते
तो क्यों न इन रिश्तों को मन से निभाएं
बोझ न समझें और हमेशा मुस्कुराएं
क्योंकि रिश्तों की ख़ूबसूरती इसी में है
आप भी मुस्कुराएं और जग भी मुस्कुराये

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 676

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anurag Goel on February 5, 2015 at 11:04am

आदरणीय बेगोवालजी आपका हार्दिक धन्यवाद 

Comment by मोहन बेगोवाल on February 4, 2015 at 11:34pm

सुंदर कविता के लिए धन्यवाद कबूल करें

Comment by Anurag Goel on February 4, 2015 at 6:28pm

परम श्रेष्ठ हरी जी आपका बहुत आभार आपका मार्ग दर्शन भी अपेक्षित है

Comment by Anurag Goel on February 4, 2015 at 6:26pm

आदरणीय सविता जी हृदय से धन्यवाद

Comment by Anurag Goel on February 4, 2015 at 6:26pm

आदरणीय गिरिराज जी आपका बहुत बहुत आभार एप प्रेरणा और मार्गदर्शन मिलता रहेगा ऐसी आशा है

Comment by Anurag Goel on February 4, 2015 at 6:25pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी हृदय से धन्यवाद

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 4, 2015 at 4:42pm

बहुत सुंदर, आदरणीय अनुराग जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 1:42pm

आदरणीय अनुराग  भाई , अच्छी रचना हुई है , आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by savitamishra on February 3, 2015 at 10:58pm

बहुत सुन्दर

Comment by Hari Prakash Dubey on February 3, 2015 at 8:41pm

आदरणीय अनुराग गोयल जी , आदरणीय मिथिलेश जी की बात से सहमत हूँ ,आपका ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में स्वागत है ,रचना सुन्दर भावों से सजी है , बस ये “कभी” शब्द कई बार आ गया है ,आपको हार्दिक बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service