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"आप का नाम क्या है ?" बगल में आई नयी पड़ोसन ने पूछा |
वो सोच में पड़ गयी , क्या बताये | शादी के बाद जब से इस घर में आई है तब से तो किसी ने उसके नाम से नहीं पुकारा | शुरू में बहू , फिर मुन्ने की माँ और अब मिसेस शर्मा , यही सुनती आई है वो | शायद तीस साल बहुत होते हैं किसी को खुद का वजूद भूलने के लिए | वो अपना वजूद ढूँढ रही थी , पड़ोसन चली गयी थी |

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मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on February 3, 2015 at 12:08pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय शरदिंदु मुखेर्जी जी ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 3, 2015 at 1:22am
बहुत ही प्रासंगिक और संवेदनशील है इस रचना का विषयवस्तु. आपकी उन्नत सोच के लिए आप नि:संदेह प्रशंसा के पात्र हैं आदरणीय विनय जी.
Comment by विनय कुमार on February 2, 2015 at 4:28pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी | आपकी विस्तृत टिप्पणी पाकर मन प्रसन्न हुआ | आपकी राय बिलकुल सही है ..


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 2, 2015 at 2:53pm

निज पहचान को खोती हुई मध्यवर्गीय गृहणी की व्यथा को सुन्दर शब्दों में पिरोया है भाई विनय सिंह जी। लघुकथा सुन्दर हुई है, किन्तु इसका अंत  कहीं बेहतर हो सकता था। मुझे हमसूस हो रहा है कि कहानी के अंत में श्रीमती शर्मा का खामोश रहना और बिना कुछ कहे-सुने पड़ोसन का वापिस लौट जाना, ज़रूर कमी की तरफ इशारा नहीं कर रहा है। क्या यहाँ "वजूद गुम हो जाने" के दर्द को थोड़ा और विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए था ? मसलन, श्रीमती शर्मा को ऊहापोह में पड़े देखते हुए यदि नई पड़ोसन ये कह दे कि "ठीक है, मैं आज से आपको "ऑन्टी" बुलाऊँगी !" और इसके बाद वो अपना खोया वजूद ढूंढे तो कैसा रहे ? ज़रा सोच कर देखें।

Comment by विनय कुमार on February 1, 2015 at 7:16pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी..

Comment by somesh kumar on February 1, 2015 at 3:06pm

nari jivan ka sunder ytharth

Comment by विनय कुमार on February 1, 2015 at 11:55am

बहुत बहुत आभार आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी.. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 1, 2015 at 9:20am

आदरणीय विनय जी आपने एक अनछुये पहलू को उभारा है, बधाई इस लघुकथा के लिये

Comment by विनय कुमार on January 31, 2015 at 5:06pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम मठपाल जी..

Comment by Shyam Mathpal on January 31, 2015 at 3:18pm

Aadarniya vinay ji,

Badhai Ho. Apna ghar dhunte huwe apna wajud bhool gaye

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