“सुनिए , जरा प्याज काट दीजिये । ”
“देख नहीं रही हो , अभी-अभी थक हार के घर लौटा हूँ ।”
अरे….मैं भी तो आज 5 बजे दफ्तर से आयीं हूँ ।
“हाँ तो कौन सा पहाड़ खोद कर आई हो ।”
“तो तुम ही कौन सा लोहा पिघला रहे थे ?”
“इतना सुनते ही पति ने चप्पल उठा के पत्नी के मुहँ पर दे मारी, पत्नी तमतमा कर आई और पास ही पड़ा जूता उठा कर पति के मुहँ पर जड़ दिया ।”
इधर खबर आ रही थी.. “अभी –अभी , वेंटिलेटर पर पड़ी भारतीय संस्कृति ने दम तोड़ दिया ।”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी बहुत बहुत आभार आपका !
सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार , आदरणीय विनय जी !
अच्छी लघुकथा है भाई जी |पर हाँ ,खबर से जुड़ाव नहीं लग रहा है |
एक अच्छी लघुकथा हेतु बधाई आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी..
आदरणीय हरिप्रकाश जी, बहुत ही सुन्दर प्लाट पर आपने काम किया है, इसके लिए बधाई अर्पित करता हूँ. सभी साथियों ने पंच लाइन की तारीफ़ किये हैं, लेकिन पता नहीं क्यों मुझे यह पंच लाइन और शीर्षक दोनों नहीं जमा.
//इधर खबर आ रही थी.. “अभी –अभी , वेंटिलेटर पर पड़ी भारतीय संस्कृति ने दम तोड़ दिया ।”//
यह खबर आखिर किस सन्दर्भ में आ सकती है ? खबर यदि कोई Realistic होती जो अप्रत्यक्ष रूप से घटित घटना को परिभाषित करती तो आनंद आ जाता.
आदरणीय गुमनाम भाई आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ ,हार्दिक धन्यवाद !
आदरणीय हरिकिशन ओझा जी बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया साहब आशीष यूँ ही बनाये रखिये आपका आभार ! सादर
बहुत बेहतर प्रस्तुति, आदरणीय हरिप्रकाश जी. कम ही पंक्तियों में बहुत कसा हुआ चित्रण. बधाई स्वीकारें
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