परिवर्तन
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बून्द की नाराजगी का संज्ञान
सागर ले ही
ज़रूरी नहीं
फिर भी नाराजगी बून्द की अपनी स्वतंत्रता है
प्रकृति प्रदत्त
संज्ञान अगर सागर ले भी ले तो
खुद में कोई परिवर्तन भी करे ये नितांत ज़रूरी नहीं
वैसे हर नाराजगी कोई परिर्वतन ही चाहती हो किसी में
ये भी ज़रूरी नहीं
कुछ नाराजगी व्यवहारिक खानापूर्तियाँ भी होतीं है
कुछ स्वांतः सुखाय
अपने ज़िन्दा होने के सबूत के बतौर
वैसे तो जीवंतता का एक अहम तत्व है
परिवर्तन
अब, औरों में नहीं
तो ख़ुद में सही
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
गुस्ताखी की माफ़ी तो मुझे दोनों से चाहिए होगी आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर से भी और आदरणीय गिरिराज सर से भी
गुरुदेव आदरणीय गोपाल सर , सही कहा आपने , वैसे " द्रश्य का दृष्टा पर प्रभाव पड़ता है " संगत का असर है ..हा हा ..गुस्ताखी माफ़ ! सादर
हा हा हा..... क्या खूब कहा आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर .... ग़ज़लोंई करते करते आदरणीय गिरिराज सर अचानक दर्शन की गहराइयों में जाने लगे है. एक अतुकांत कविता आपसी ताप से जलती टहनियाँ / इसके बाद की कविता मै कभी नहीं मरता / और अब ये कविता परिवर्तन
मित्र
आप दार्शनिक होते जा रहे हैं i इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई i
आदरणीय गिरिराज सर सुन्दर रचना ....
परिवर्तन
अब, औरों में नहीं
तो ख़ुद में सही.....बहुत सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आपको ! सादर
आदरणीय शिज्जु भाई , रचना को आपका अनुमोदन मिला , रचना सार्थक हुई ! आपका आभारी हूँ ।
वाह क्या बात है। आपकी यह रचना अभिव्यक्ति की स्वंत्रतता का पुरज़ोर समर्थन करती है। परिवर्तन खुद में हो पर सकारात्मक बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये।
आदरणीय सौरभ भाई , रचना मे गहरे उतर के केन्द्रिय भाव तक पहुंच के आपने जो प्रतिक्रिया दी है , मन प्रसन्न है , लिखना सार्थक कर दिया आपने ।
परिवर्तन
अब, औरों में नहीं
तो ख़ुद में सही --- जब परिवर्तन जीवंतता का सबूत है ( तत्व है ) तो इस लिहाज़ से अगर कोई परिवर्तन से इनकार करता है तो उसे मर चुका है, यही मानना चाहिये , ऐसे में हम क्यों मरें , हमे हमेशा आवश्यक परिवर्तन को स्वीकार करना चाहिये यही हमे सच में ज़िन्दा रखता है ।
आदरणीय विजय भाई , रचना के भाव स्वीकार करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय सोमेश भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
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