नयन सखा डरे डरे, प्रमाद से भरे भरे......
सबा चले हजार सू फिज़ा सिहर सिहर उठे
भरी भरी हरित लता खिले खिले सुमन हँसे
चिनार में कनेर में खजूर और ताड़ में
अड़े खड़े पहाड़ पे घने वनों की आड़ में
उदास वन हृदय हुआ उदीप्त मन निशा हरे.............
शज़र शज़र खड़े बड़े करें अजीब मस्तियाँ
विचित्र चाल से चले बड़ी विशेष पंक्तियाँ
सदा कही नहीं मगर दिलो-दिमाग कांपता
मधुर मधुर मृदुल मृदुल प्रियंवदा विचिन्तिता
विचारशील कामना प्रसंग से परे परे..........
ख़ुदा नहीं मिले कभी सनम जुदा जुदा रहे
अस्वस्थ व्यस्त सा हृदय सदा पिया पिया कहे
अजीब इश्क शै खुदा मिला कभू जुदा कभू
पिया प्रभु से हो गए कि हो गए पिया प्रभु
असीम एक नाम से विरक्त मन जगत तरे.........
सुखन, ग़ज़ल, कता ख़ुदा नजीब अर्जमंद से
अकाट्य तथ्य से महीन शब्द अर्थ द्वन्द से
खला नहीं नज़र नज़र मगर करे असर खला
असाध्य साधना नहीं तथापि कर्म बावला
निपंग साधना यहाँ विकल्प से सदा डरे...........
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
आदरणीय harivallabh sharma सर जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार धन्यवाद
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर नवगीत के इस प्रयास पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया, स्नेह और आशीर्वाद के लिए हार्दिक आभार... नमन .... आपने सही कहा ये पञ्चचामर छंद की तर्ज पर ही नवगीत का प्रयास है.
आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी नवगीत के इस प्रयास पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार... आपने सही कहा कांपता और विचिन्तिता .....तथा.... कभू और प्रभु की तुकांतता में सुधार की आवश्यकता है ... यह विचार आया था पर नवगीत में इतनी छूट मानकर प्रयोग कर लिया पुनः सुधार का प्रयास करता हूँ.... रचना के मर्म पर आपकी सकारात्मक टिप्पणी से अभिभूत हूँ. नमन.
आदरणीय Shyam Narain Verma जी नवगीत के इस प्रयास पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार धन्यवाद
ख़ुदा नहीं मिले कभी सनम जुदा जुदा रहे
अस्वस्थ व्यस्त सा ह्रदय सदा पिया पिया कहे
वाह सर खूबसूरत रचना के लिए बधाई
आ० मिथिलेश वामनकर जी , आनंद आ गया ,सुन्दर गीत , दिल से बधाई आपको !
अति सुंदर रचना आपको बहुत बहुत बधाई हो
मन मोहिनी रचना के बधाई आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी.
आ० वामनकर जी
सुखन, ग़ज़ल, कता ख़ुदा नजीब अर्जमंद से
अकाट्य तथ्य से महीन शब्द अर्थ द्वन्द से
खला नहीं नज़र नज़र मगर करे असर खला
असाध्य साधना नहीं तथापि कर्म बावला
निपंग साधना यहाँ विकल्प से सदा डरे...........बहुत सुन्दर रचना i हिन्दी का 'पंच चामर' छंद है यह i बधाई रचनाकार i
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