For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक छईण्टी आलू

बात पुरानी है , गाँव से जुड़ी हुई । बटेसर के काका यानि पिताजी विद्या बोले जाते थे । सब उनको बाबा कहते तथा बटेसर को काका ।  लिखने –पढ़ने के नाम  पर  बाबा का बस अंगूठे के निशान से ही काम चल जाता था , पर अच्छे –अच्छों को बातों में धूल चटा देना उनके बायें हाथ का खेल था ।बथान में बैलों को सानी (खाना –पानी ) दे रहे बटेसर से बात करते –करते भोला को कुछ याद आया, तो वह कुएँ से पानी निकलते बाबा की ओर मुड़कर बोला , ‘ बाबा ! उ महेसर भाई के आलू के का कहानी बा?’

‘अरे बुरबक ! एक ही बात कितनी बार तू सुनना चाहता है रे ? पहले भी सुन चुका है । अभी तो गनेसी  भी सुनकर गया है’।

गनेसी यानि अपने पिता का नाम सुन भोला थोड़ा ठमक गया । फिर इधर –उधर की बातें होने लगीं । तबतक गंगू आ गया । वह तो लोगों के खेतों से फसल उड़ाने के लिए ही मशहूर था । कलाकार तो ऐसा  कि बड़े पोखर पर पुलिस का पहरा था कि कहीं कोई मछलियाँ न पकड़ ले । नीचे पुलिस  रातभर पहरा दे रही थी और पोखर के किनारे के ही पेड़ पर चढ़कर गंगू ने  पोखर में वंशी डाल दी और बड़ी –सी बराड़ी खींचकर सुबह पुलिस वालों को सलाम ठोकता निकल गया ।

गंगू को देख आलूवाली बात फिर गरमाने लगी । आखिर बाबा को कथा दुहरानी पड़ी । बोले , ‘रे देखो भाई ! बात कोई बड़ी नहीं, फिर भी समझो बड़ी ही है । अरे गाँव की हाट से जग्गू मास्टर साहब लौट रहे थे । महेसर बाबू के आलूवाले खेत की पगडंडी से गुजरते हुए उनकी नजर मिट्टी फाड़कर बाहर झाँकते लाल –लाल आलुओं पर क्या पड़ी कि पाँव जहां –के –तहां ठिठक गये । लाल आलू के चोखा का स्वाद जीभ को बेताब करने लगा । बेबस हो बेचारे बैठ गये, हाथ अनायास ही बरबस बाहर झाँकते आलुओं तक पहुँच गये । गाँव के लोग भी देख रहे थे कि मास्टर साहेब बैठे हैं मेड़ पर, थके होंगे पैदल चलने से । रिटायर आदमी ठहरे बेचारे। पर बात तो अलग थी । मास्टरजी  लाल –लाल आलुओं का संग्रह कर चलने को हुए तबतक महेसर अपने द्वार से चलकर खेत तक आ चुके थे । मास्टरजी  को देखकर बोले , ‘अरे साहब यह क्या ? कितना कष्ट हुआ आपको ?’

जग्गू बोले, ‘नहीं, नहीं। महेसर जी, कोई कष्ट नहीं । लाल आलुओं का चोखा बड़ा अच्छा होता है, सो हमने सोचा कि कुछ ले लेते हैं’।

महेसर बोले, ‘अरे बाबू साहेब ! आप बोलते हम पहुंचवा देते न । आइये, आइये चलिये’।

फिर दोनों बातें करते चल पड़े ।

बाबा फिर कहने लगे, ‘कल होकर महेसर बाबू का आदमी माथे पर एक छईण्टी लिए जा रहा था। मैंने पूछा तो बोला कि जग्गू मास्साब के यहाँ आलू ले जा रहे हैं, वही लाल –लाल वाले । कल जग्गू बाबू खुद ही न आलू निकाल रहे थे महेसर बाबू के खेत से, सो मालिक आज बोले कि ले जा भर छईण्टी आलू दे आ बेचारे के यहाँ । लाल आलू का चोखा पसंद है उन्हें । वही ले जा रहा हूँ । पर बाबा ! मालिक बोले थे किसीको बताना मत। भला मैं क्यों बताऊँ किसीको ?’

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 578

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on November 19, 2014 at 3:30pm

धन्यवाद आदरणीय, प्रभाकरजी। 

Comment by Manan Kumar singh on November 19, 2014 at 3:29pm

ऐसा प्रतीत होता है कि मेरी ओबीओ पर पोस्ट की हुई रचनाएँ हवा हो जा रही हैं;वाल पर दिखती नहीं हैं। 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 19, 2014 at 10:57am

अच्छा प्रयास है, प्रयासरत रहें।

Comment by Manan Kumar singh on November 13, 2014 at 11:48am
गोपाल नारायणजी,आपकी शुभकामनाओं के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 13, 2014 at 11:42am

बाबा भारती और डाकू खडग सिंह की कहानी याद आ गयी  i सुदर्शन चक्र की कहानी में डाकू ने बाबा का घोड़ा  जबरन छीना  तब बाबा ने कहा ले तो जा रहे हो पर यह मत किसी से कहना कि छीन  कर ले जा रहे हो वरना गरीब पर कोई विश्वास नहीं करेगा  i इस कहानी में निहितार्थ था पर आपकी कहानी एक नवल प्रयास है  i प्रयास के लिए शुभ  कामना i लेखनी मंजते -मंजते ही मजती है  i लेखन चालू रहे i

Comment by Manan Kumar singh on November 13, 2014 at 9:11am

सोमेश जी, पात्रानुकूल भाषा का अपना अर्थ होता है। 

Comment by somesh kumar on November 12, 2014 at 9:13pm

शायद यह एक प्रकार की किस्सागोई है जिसमे देसज शब्दों का भरपूर प्रयास किया गया है |पर लेखन के प्रयास के लिए आप का स्वागत है |और ये प्रयास सराहनीय है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
yesterday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service