" ये सब छोड़ क्यों नहीं देती ", कपड़े पहनते हुए उसने कहा । "एक नयी जिंदगी शुरू करो, इस गन्दगी से दूर, इज़्ज़त की जिंदगी" ।
"ऐसा है, ऐसे भाषण देने वाले बहुत मिलते हैं, लेकिन कपड़े पहनने के बाद । और ये काम मैं किसी के दबाव में नहीं करती, अपनी मर्ज़ी से करती हूँ और अच्छे पैसे भी मिल जाते हैं । मुझे पता है ज्यादे दिन नहीं चलना है ये , इसीलिए भविष्य के लिए भी कमा लेना चाहती हूँ । एक बात और, इज़्ज़त जब तुम लोगों की नहीं जाती, तो मेरी क्यों जाएगी" ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बिलकुल सच कहा आपने रवि प्रभाकर जी | बड़ा शानदार मंच है ये |
यह एक ऐसा मंच है जहां पर सुधिजन अपने पाठक धर्म का बड़ी ही निष्ठा से निर्वाहन करते हैं। वे न केवल रचनाओं को अपना बहुमूल्य समय देतें है बल्कि उसकी त्रुटियों से अवगत भी करवाते है (बेशक कई बार ऐसा करना ‘आ बैल मुझे मार’ वाले मुहावरे को सत्य सिद्ध भी करता है।) यह एक ऐसा शक्तिशाली मंच जो किसी ज़र्रे को आफताब बना सकता है। (जिसके कई उदाहरण मैने प्रत्यक्ष देखें हैं।) ओबीओ जिन्दाबाद !
विश्वास है, भाईजी, आपने मेरी टिप्पणी को पूरी तरह से पढ़ा है. अंतिम पंक्ति को हटाने से भी अधिक आवश्यक है अंतिम चारों वार्तालाप-पंक्तियों को एक साथ रखने की, न कि चार पंक्तियों को चार इन्वर्टेड कॉमा में अलग-अलग रखने की. भाईजी, कारण मैंने कह ही दिया है.
आपकी लघुकथाओं की प्रतीक्षा रहती है.
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभजी , शुरुवात में आप लोगों ने कुछ भी नहीं लिखा तो मुझे लगा की शायद उचित नहीं लिखा मैंने , लेकिन आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर प्रसन्नता हुई | दरअसल अभी मैं सीख रहा हूँ इसलिए कुछ गलतियां स्वाभाविक हैं | आखिरी लाइन निकाली जा सकती है | आभार आपका मार्गदर्शन हेतु |
आभार सुभ्रांशुजी , सहमत हूँ आपसे , धन्यवाद ..
आदरणीय विनय जी,
सुन्दर कथा. शिल्पगत सुधारों के साथ रचना और भी प्रभावशाली होगी.
सादर.
आपकी लघुकथाओं में एक कसावट होती है. यह कसावट कम शब्दों के प्रयोग मात्र से नहीं होती, आदरणीय विनय कुमारजी. प्रस्तुतियों में ऐसी कसावट कथ्य को प्रस्तुत करने की विशिष्ट कला है, जो शब्द-मितव्ययिता के बावज़ूद संप्रेषणीयता के उच्च मानको को संतुष्ट करती है.
आपकी प्रस्तुत लघुकथा का तथ्य स्पष्ट होने के बावज़ूद प्रस्तुतीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है. बल्कि सही कहिये, तो लघुकथा का कथोपकथन भ्रामक भी है. प्रस्तुति में पात्रों के वार्तालाप को सही ढंग से प्रस्तुत ही नहीं किया गया है. जोकि आपकी कथा का अहम पहलू है.
अंतिम चार वार्तालाप-वाक्य एक ही पात्र के संवाद हैं, जो एक ही भावदशा में कहे गये हैं. लेकिन चारों वाक्यों को चार वार्तालाप-वाक्य बना कर, यानि अलग-अलग इन्वर्टॆड कॉमा के साथ, प्रस्तुत किया गया है. इससे दो पात्रों के परस्पर कथोपकथन का भ्रम होता है. वार्तालाप-वाक्यों में इन्वर्टेड-कॉमा का क्या मतलब होता है यह आप स्वयं जानते हैं.
दूसरे, अंतिम वाक्य यानि लेखकीय भावाभिव्यक्ति की आवश्यकता मुझे प्रतीत नहीं होती. पुरुष पात्र की उक्त दशा से तो हर पाठक गुजरता ही है. इसे कहना क्या आवश्यक ?
विश्वास है, मेरे कहे को आप स्वस्थ अनुमोदन के तौर पर लेंगें.
सादर
आभार जितेंद्रजी..
सच है. बधाई आपको आदरणीय विनय जी
आभार श्याम नारायण वर्मा जी..
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