For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" ये सब छोड़ क्यों नहीं देती ", कपड़े पहनते हुए उसने कहा । "एक नयी जिंदगी शुरू करो, इस गन्दगी से दूर, इज़्ज़त की जिंदगी" ।

"ऐसा है, ऐसे भाषण देने वाले बहुत मिलते हैं, लेकिन कपड़े पहनने के बाद । और ये काम मैं किसी के दबाव में नहीं करती, अपनी मर्ज़ी से करती हूँ और अच्छे पैसे भी मिल जाते हैं । मुझे पता है ज्यादे दिन नहीं चलना है ये , इसीलिए भविष्य के लिए भी कमा लेना चाहती हूँ । एक बात और, इज़्ज़त जब तुम लोगों की नहीं जाती, तो मेरी क्यों जाएगी" ।

  

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 710

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on August 19, 2014 at 5:37pm

बिलकुल सच कहा आपने रवि प्रभाकर जी | बड़ा शानदार मंच है ये |

Comment by Ravi Prabhakar on August 19, 2014 at 4:43pm

यह एक ऐसा मंच है जहां पर सुधिजन अपने पाठक धर्म का बड़ी ही निष्ठा से निर्वाहन करते हैं। वे न केवल रचनाओं को अपना बहुमूल्य समय देतें है बल्कि उसकी त्रुटियों से अवगत भी करवाते है (बेशक कई बार ऐसा करना ‘आ बैल मुझे मार’ वाले मुहावरे को सत्य सिद्ध भी करता है।) यह एक ऐसा शक्तिशाली मंच जो किसी ज़र्रे को आफताब बना सकता है। (जिसके कई उदाहरण मैने प्रत्यक्ष देखें हैं।) ओबीओ जिन्दाबाद !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 19, 2014 at 12:02am

विश्वास है, भाईजी,  आपने मेरी टिप्पणी को पूरी तरह से पढ़ा है. अंतिम पंक्ति को हटाने से भी अधिक आवश्यक है अंतिम चारों वार्तालाप-पंक्तियों को एक साथ रखने की, न कि चार पंक्तियों को चार इन्वर्टेड कॉमा में अलग-अलग रखने की. भाईजी, कारण मैंने कह ही दिया है.

आपकी लघुकथाओं की प्रतीक्षा रहती है.

शुभ-शुभ

Comment by विनय कुमार on August 18, 2014 at 10:01pm

आदरणीय सौरभजी , शुरुवात में आप लोगों ने कुछ भी नहीं लिखा तो मुझे लगा की शायद उचित नहीं लिखा मैंने , लेकिन आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर प्रसन्नता हुई | दरअसल अभी मैं सीख रहा हूँ इसलिए कुछ गलतियां स्वाभाविक हैं | आखिरी लाइन निकाली जा सकती है | आभार आपका मार्गदर्शन हेतु | 

Comment by विनय कुमार on August 18, 2014 at 9:57pm

आभार सुभ्रांशुजी , सहमत हूँ आपसे , धन्यवाद ..

Comment by Shubhranshu Pandey on August 18, 2014 at 11:45am

आदरणीय विनय जी,

सुन्दर कथा. शिल्पगत सुधारों के साथ रचना और भी प्रभावशाली होगी. 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2014 at 11:13am

आपकी लघुकथाओं में एक कसावट होती है. यह कसावट कम शब्दों के प्रयोग मात्र से नहीं होती, आदरणीय विनय कुमारजी.  प्रस्तुतियों में ऐसी कसावट कथ्य को प्रस्तुत करने की विशिष्ट कला है, जो शब्द-मितव्ययिता के बावज़ूद संप्रेषणीयता के उच्च मानको को संतुष्ट करती है. 

आपकी प्रस्तुत लघुकथा का तथ्य स्पष्ट होने के बावज़ूद प्रस्तुतीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है. बल्कि सही कहिये, तो लघुकथा का कथोपकथन भ्रामक भी है. प्रस्तुति में पात्रों के वार्तालाप को सही ढंग से प्रस्तुत ही नहीं किया गया है. जोकि आपकी कथा का अहम पहलू है.

अंतिम चार वार्तालाप-वाक्य एक ही पात्र के संवाद हैं, जो एक ही भावदशा में कहे गये हैं. लेकिन चारों वाक्यों को चार वार्तालाप-वाक्य बना कर, यानि अलग-अलग इन्वर्टॆड कॉमा के साथ, प्रस्तुत किया गया है. इससे दो पात्रों के परस्पर कथोपकथन का भ्रम होता है. वार्तालाप-वाक्यों में इन्वर्टेड-कॉमा का क्या मतलब होता है यह आप स्वयं जानते हैं.

दूसरे, अंतिम वाक्य यानि लेखकीय भावाभिव्यक्ति की आवश्यकता मुझे प्रतीत नहीं होती. पुरुष पात्र की उक्त दशा से तो हर पाठक गुजरता ही है. इसे कहना क्या आवश्यक ?

विश्वास है, मेरे कहे को आप स्वस्थ अनुमोदन के तौर पर लेंगें.

सादर

Comment by विनय कुमार on August 16, 2014 at 11:25pm

आभार जितेंद्रजी..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 16, 2014 at 11:47am

सच है. बधाई आपको आदरणीय विनय जी

Comment by विनय कुमार on August 14, 2014 at 9:59pm

आभार श्याम नारायण वर्मा जी..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service