जैसे जैसे बिख़री रात,
बिस्तर बिस्तर पिघली रात.
.
चाँद के साथ बदलती रँग,
काली भूरी कत्थई रात.
.
चाँद ज़मीं पर उतरा था,
हुई अमावस पिछली रात.
.
एक शम’अ थी साथ मेरे,
फिर भी तन्हा सुलगी रात.
.
आते आते ख्व़ाब तेरे,
दामन से क्यूँ फ़िसली रात.
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दौर चलेंगे यादों के,
लिया करेगी हिचकी रात.
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पिया गए परदेस सखी,
भीगी सहमी सिसकी रात.
.
रात के बाद सवेरा है,
सुब्ह से पहले गहरी रात.
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निलेश "नूर"
Comment
:):) आभार
कई बार होता है.. हम ’उन’ गलियों में एक बार फिर टहल आते हैं..
आज वैसा ही मन कर गया.. :-))
शुक्रिया आ. सौरभ सर..
आज कुदाल फावड़े ले कर कहाँ मोएन-जो-दारो की ख़ुदाई पर निकल आए आप :)
कई शेर बहुत महीन हैं. बहुत-बहुत महीन.
आदरणीय नीलेशजी, आपकी इस ग़ज़ल पर क्या कहूँ, बस मुग्ध हूँ. .. दौर चलेंगे यादों के / लिया करेगी हिचकी रात !
जय हो..
धन्यवाद आ. डॉ आशुतोष मिश्रा जी ..
मात्रा क्रम है 22/22/22/2 +1 (ऑप्शनल)
धन्यवाद आ. राम शिरोमणि पाठक जी
आदरणीय नीलेश जी ..हर शेर बेहद भाया //कृपया मात्रिक क्रम लिखने का कष्ट करें ..धन्यवाद और सादर बधाई के साथ
वाह भाई नीलेश जी बहुत ही प्यारी ग़ज़ल ........ हार्दिक बधाई आपको
ऐसी प्रस्तुतियों पर महज़ वाह-वाह नहीं करते, इन्हें गुनते हैं. मुग्ध हूँ, आदरणीय नीलेशजी.
सादर
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